यह गंभीर चिंता का विषय बनना चाहिए कि महाराष्ट्र और केरल के अलावा कुछ और राज्यों में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ने लगी है। इस सिलसिले को तत्काल प्रभाव से रोका जाना चाहिए। इसके लिए केवल यह जरूरी नहीं कि राज्य सरकारें केंद्र के इस निर्देश का तत्परता से पालन करें कि टीकाकरण में तेजी लाई जाए, बल्कि यह भी है कि लोग कोरोना संक्रमण से बचे रहने के लिए गंभीरता प्रदर्शित करें। यह गंभीरता उन राज्यों के लोगों को भी दिखानी होगी, जहां कोरोना संक्रमण के मामले कम हो रहे हैं। कोरोना संक्रमण की रफ्तार धीमी होने का यह मतलब नहीं कि उसका प्रकोप खत्म हो गया है। महाराष्ट्र, केरल, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब में कोरोना के बढ़ते मामले यही कह रहे हैं कि लापरवाही महंगी पड़ सकती है। अब भी सावधान रहने की जरूरत इसलिए है, क्योंकि सार्वजनिक यातायात के साधन उपलब्ध होने के साथ ही अन्य पाबंदियों से मुक्ति मिल चुकी है। जब इतने समय तक मास्क लगाने और सार्वजनिक स्थलों में शारीरिक दूरी बरतने के प्रति सावधानी दिखाई गई है तो फिर कुछ और दिन ऐसा करने में हर्ज नहीं। इसकी अनदेखी न की जाए कि कोरोना का कहर कम होने के बाद भी वह जानलेवा साबित हो रहा है और करीब सौ लोग प्रतिदिन अपनी जान गंवा रहे हैं।

केंद्र सरकार के लिए केवल यही आवश्यक नहीं है कि वह राज्यों को टीकाकरण की रफ्तार बढ़ाने के निर्देश दे, बल्कि यह भी है कि इसकी निगरानी करे कि ऐसा हो रहा है या नहीं? यह सही समय है कि उन तौर-तरीकों पर विचार किया जाए, जिनसे टीकाकरण की रफ्तार तेज हो सकती है। अब जब पहले चरण का टीकाकरण खत्म होने वाला है तब फिर इसके उपाय किए जाने चाहिए कि दूसरे चरण में अधिक से अधिक लोगों का टीकाकरण कैसे हो। यह अच्छा है कि एक करोड़ से अधिक लोगों को टीका लग चुका है, लेकिन बड़ी आबादी वाले देश में यह संख्या कम ही है। बेहतर हो कि दूसरे चरण में ऐसी कोई व्यवस्था की जाए जिससे 50 वर्ष से अधिक आयु के लोगों के साथ उन सभी का टीकाकरण प्राथमिकता के आधार पर किया जा सके, जो काम-धंधे के सिलसिले में भीड़ वाले स्थानों में ज्यादा आते-जाते हैं। ऑटो-रिक्शा चालकों, फल-सब्जी बेचने वालों, कारखाना कामगारों आदि को जल्द टीकाकरण के दायरे में लाना चाहिए। इसी तरह मेट्रो, लोकल ट्रेनों और सार्वजनिक परिवहन के अन्य साधनों का उपयोग करने वालों को भी यथाशीघ्र टीका लगाया जाना चाहिए। चूंकि टीकाकरण की रफ्तार तेज करना जरूरी हो गया है इसलिए निजी क्षेत्र के अस्पतालों को भी टीकाकरण अभियान का हिस्सा बनाने में देर नहीं की जानी चाहिए।