यह अच्छा हुआ कि केंद्र सरकार की एक विशेषज्ञ समिति ने कोविड रोधी टीके स्पुतनिक के उपयोग को मंजूरी दे दी। औषधि महानियंत्रक की ओर से हरी झंडी मिलते ही इस टीके का भारत में उत्पादन और वितरण शुरू हो जाएगा। देश में इसका उत्पादन डॉ. रेड्डीज लैब्स के साथ एक अन्य कंपनी की ओर से किया जा सकता है। इससे टीकों की कथित कमी दूर करने के साथ ही टीकाकरण की रफ्तार बढ़ाने में भी मदद मिलेगी। रूस निर्मित स्पुतनिक टीके की खास बात यह है कि एक तो इसके ट्रायल देश में भी हुए हैं और दूसरे, यह 91.6 प्रतिशत तक प्रभावी है। इस टीके की विश्वसनीयता का पता इससे भी चलता है कि दुनिया के करीब 50 देशों में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। अब जब कोवैक्सीन और कोविशील्ड के साथ स्पुतनिक की उपलब्धता के आसार दिखने लगे हैं, तब फिर प्रतिदिन 50 लाख लोगों को टीका लगाने के लक्ष्य को हासिल करने की तैयारी की जानी चाहिए। यह ठीक है कि टीका उत्सव के पहले दिन करीब तीस लाख टीके लगे, लेकिन यह संख्या अनुमान से कम है। चूंकि कोरोना संक्रमण उफान पर है और एक दर्जन से अधिक राज्यों में हालात बेकाबू से दिख रहे हैं, इसलिए केवल टीकाकरण की रफ्तार बढ़ाना ही पर्याप्त नहीं। इसी के साथ यह भी सुनिश्चित किया जाए कि लोग कोरोना संक्रमण से बचे रहने के लिए आवश्यक सावधानी बरतें और यदि वे ढिलाई का परिचय दें तो उनके खिलाफ सख्ती की जाए।

यह कहने मे संकोच नहीं कि लोग इस हिदायत से बेपरवाह दिख रहे हैं कि जरूरी होने पर ही घर से निकलना है और वह भी पूरी सावधानी के साथ। यह भी विचित्र है कि एक ओर कोरोना संक्रमण दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ रहा है और दूसरी ओर बंगाल में चुनावी रैलियां हो रही हैं और हरिद्वार में कुंभ का आयोजन। क्या यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि चुनावी रैलियों में आने वाले मास्क लगाने के साथ शारीरिक दूरी का पालन कर रहे हैं? सवाल यह भी है कि क्या कुंभ मेले में केवल वही पहुंच रहे हैं, जो कोरोना निगेटिव प्रमाण पत्र से लैस हैं? यह समझा जाना चाहिए कि राजनीतिक एवं धार्मिक-सांस्कृतिक आयोजन पूरी सतर्कता के साथ आयोजित किया जाना आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है। जब मास्क से लैस रहने के साथ शारीरिक दूरी का पालन करना बहुत जरूरी हो गया है, तब यह ठीक नहीं कि देश में ऐसे आयोजन बेपरवाही के साथ होते हुए दिखें, जिनमें बड़ी संख्या में लोग जुट रहे हैं। संक्रमण का खतरा बढ़ाने वाले ऐसे आयोजन देश-दुनिया को कोई सही संदेश नहीं देते।