दिल्ली में वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए नेशनल ग्रीन टिब्यूनल (एनजीटी) का नई कार्ययोजना प्रस्तुत करना दर्शाता है कि वह इस समस्या को लेकर किस हद तक गंभीर है। यह इस ओर भी संकेत करता है कि एनजीटी वायु प्रदूषण पर नियंत्रण को लेकर बनी मौजूदा कार्ययोजना से संतुष्ट नहीं है। यानी पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण (ईपीसीए) द्वारा प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए लाई गई कार्ययोजना के निष्प्रभावी साबित होने के बाद एक नई कार्ययोजना लाने की जरूरत महसूस हुई। संभव है कि ईपीसीए की कार्ययोजना में खामी रही हो, लेकिन एक अहम पहलू यह भी है कि ईपीसीए की कार्ययोजना अपने पूरे स्वरूप में लागू ही नहीं हो पाई।

यह निराशाजनक ही है कि दिल्ली सरकार व जिन एजेंसियों पर इसे लागू करने का दायित्व था, वे इसके प्रति गंभीर नहीं दिखीं। यही वजह रही कि ईपीसीए के चेयरमैन व सदस्यों की सक्रियता के बावजूद प्रदूषण से जंग में दिल्ली इस बार भी विफल साबित हुई। ईपीसीए चेयरमैन और इसके सदस्यों ने कई बार कहा कि दिल्ली सरकार से उन्हें सहयोग नहीं मिल रहा है। इस पहलू को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। यदि ईपीसीए के आरोप सही हैं तो कितनी भी योजनाएं ले आई जाएं, उनका कोई प्रभावी नतीजा सामने नहीं आ पाएगा। ऐसे में आवश्यकता इस बात की है कि ईपीसीए या उसकी जगह कार्ययोजना लागू कराने वाली अन्य कोई एजेंसी है, तो उसे अधिकार संपन्न बनाया जाए। वह एजेंसी सिर्फ निर्देश देकर बैठ जाने वाली न हो, बल्कि आदेश का पालन न होने की स्थिति में उसके पास कार्रवाई का भी अधिकार हो।

[ स्थानीय संपादकीय: दिल्ली ]