हरियाणा सरकार गिरते भूजल स्तर में सुधार व जल संकट से निपटने के लिए तालाबों के संरक्षण की मुहिम चला रही है। इसके तहत 60 करोड़ रुपये से 14 हजार तालाबों के पुनर्जीवन का लक्ष्य है। इससे भूजल स्तर में सुधार होगा व सिंचाई के लिए पर्याप्त जल भंडार उपलब्ध रहेंगे। पुरातन समय में तालाब अर्थतंत्र के केंद्र थे और यह जल सिंचाई के अलावा पशुओं के लिए भी प्रयुक्त होता था। ग्रामीण स्वयं तालाब का महत्व समझते थे और उसे पूजनीय मानते थे। अब तालाब या तो कचरे के ढेर बन चुके हैं या फिर उन पर अतिक्रमण कर पक्के निर्माण हो चुके हैं। इससे न वर्षा का जल संचयन हो पाया और न भूगर्भ में इसे संरक्षित किया जा सका।
अब तालाब में कचरा डालना व निर्माण करना दंडनीय अपराध बनाया जा रहा है। राज्य तालाब प्राधिकरण के गठन का प्रारूप तैयार है और स्वयं मुख्यमंत्री या सिंचाई मंत्री इसके अध्यक्ष होंगे। सरकार की मंशा पर सवाल नहीं हैं पर इसके क्रियान्वयन के लिए कई चुनौतियां हैं। चिंता इस बात की है कि तालाब की जगह अब आबादी बसी है क्या उसे हटाया जा सकता है? गांवों में कचरे के निस्तारण की कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में तालाब ही डंपिंग केंद्र हैं। जागरूकता अभियान से लोगों को तैयार किया जा सकता है लेकिन शर्त है कि गांवों में कचरा निस्तारण के विकल्प उपलब्ध करवाए जाएं। घरेलू कचरे व गोबर को जैविक खाद में बदलकर इसे काफी हद तक कम तो किया जा सकता है।

[ स्थानीय संपादकीय: हरियाणा ]