यह अच्छा हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ने कुछ राज्यों में कोरोना महामारी के चिंताजनक हालात का संज्ञान लिया और उनसे वस्तुस्थिति की रिपोर्ट देने के लिए कहा। यह हस्तक्षेप इसलिए आवश्यक था, क्योंकि देश के कुछ हिस्सों में कोरोना संक्रमण की रफ्तार चिंताजनक बनी हुई है और कोरोना मरीज घटने के बजाय बढ़ रहे हैं। इस स्थिति का निदान मुस्तैदी से करना होगा, क्योंकि सर्दी बढ़ रही है और यह आशंका है कि ऐसे मौसम में कोरोना संक्रमण और फैल सकता है। नि:संदेह राज्य सरकारों की मुस्तैदी तभी कारगर साबित होगी जब आम जनता जरूरी सतर्कता और अनुशासन का परिचय देने के लिए तत्पर होगी। यह ठीक नहीं कि लोगों में कोरोना से बचे रहने के लिए उतनी सजगता नहीं दिख रही है जितनी आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है। स्थिति यह है कि लोग मास्क लगाने में घोर लापरवाही का परिचय देने के साथ शारीरिक दूरी के प्रति भी सतर्कता नहीं दिखा रहे हैं। इससे भी खराब बात यह है कि सार्वजनिक स्तर पर धार्मिक, सांस्कृतिक और यहां तक कि राजनीतिक आयोजन भी बिना किसी रोकटोक हो रहे हैं। यह और कुछ नहीं, जानबूझकर जोखिम मोल लेने वाले आचरण हैं। ऐसा रवैया कोरोना के खिलाफ देश की लड़ाई को कमजोर करने वाला है।

कम से कम अब तो लोगों को इससे अच्छी तरह अवगत हो ही जाना चाहिए कि सतर्कता ही कोरोना से बचाव का एकमात्र प्रभावी उपाय है। जब तक कोरोना की रोकथाम के लिए वैक्सीन सामने नहीं आ जाती तब तक इस सावधानी का परिचय देने के अलावा और कोई उपाय नहीं। यह ठीक है कि कई वैक्सीन अपने अंतिम चरण में हैं, लेकिन वे आम लोगों को कब उपलब्ध होंगी, इस बारे में निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता।

कोरोेना वायरस से उपजी कोविड महामारी लोगों के संयम और अनुशासन की परीक्षा ले रही है। इस परीक्षा में खरा उतरना हर किसी की नैतिक जिम्मेदारी बननी चाहिए। जब इस जिम्मेदारी का निर्वहन किया जाएगा तब केंद्र, राज्य सरकारों और उनकी विभिन्न एजेंसियों की ओर से किए जा रहे उपाय प्रभावी साबित होंगे। बेहतर हो कि लोग यह समझें कि सरकारों के पास कोरोना की रोकथाम के लिए कोई जादू की छड़ी नहीं है और यदि सतर्कता का परिचय नहीं दिया गया तो स्थितियां और अधिक बिगड़ सकती हैं।

केंद्र और राज्य सरकारें वे सभी कदम उठा रही हैं जो कोरोना पर अंकुश के लिए आवश्यक हैं, लेकिन यह ध्यान रखने की आवश्यकता है कि पाबंदियां अनंतकाल तक कायम नहीं रख सकतीं। चूंकि हालात सामान्य करना भी उतना ही आवश्यक है इसलिए आम जनता पर यह जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि वह सावधानी के उपायों में किसी किस्म की ढिलाई न दिखाए।