कोरोना संकट के चलते गांव-घर लौटने को बेताब कामगारों के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चला रही केंद्र सरकार को यदि यह फैसला लेना पड़ा कि अब इन ट्रेनों के संचालन के लिए राज्यों की अनुमति आवश्यक नहीं तो इसका सीधा मतलब यही है कि वह राज्य सरकारों की अड़ंगेबाजी से आजिज आ गई है। कई राज्य सरकारें कामगारों की चिंता में दुबली होती तो दिख रही हैं, लेकिन वे इसके लिए इच्छुक नहीं कि पर्याप्त संख्या में श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलें। इस अनिच्छा का कारण बड़ी संख्या में घर लौटते कामगारों की सेहत की जांच और उनकी देखभाल की जिम्मेदारी से बचना है।

यदि राज्य सरकारें वांछित संख्या में श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के संचालन में रेल मंत्रालय का सहयोग कर रही होतीं तो तमाम कामगार पैदल, साइकिल अथवा ट्रकों के जरिये असुरक्षित तरीके से घर लौटने को विवश नहीं होते। अच्छा होगा कि राज्य सरकारें यह समझें कि गांव लौटने का मन बना चुके कामगारों को रोका नहीं जा सकता। जब कामगार लौटने की ठान ही चुके हैं तब फिर उचित यही है कि राज्य सरकारें उनकी सुरक्षित वापसी में केंद्र सरकार का सहयोग करें। देखना है कि रेल मंत्रालय की ओर से तय की गई नई व्यवस्था में सभी राज्य सरकारें सहयोग करने के लिए आगे आती हैं या नहीं?

अब जब केंद्र सरकार ने यह तय कर लिया है कि श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के मामले में राज्यों की सहमति आवश्यक नहीं तब फिर उसे आम यात्रियों के लिए भी सामान्य ट्रेनों के संचालन की तैयारी करनी चाहिए। आखिर 15 जोड़ी राजधानी ट्रेनें पहले से ही चल रही हैं। अभी इन ट्रेनों की सुविधा चुनिंदा शहरों के लोग ही उठा पा रहे हैं। इस सुविधा की आवश्यकता अन्य शहरों के लोगों को भी है। सामान्य ट्रेनों का संचालन बढ़ने से केवल आम लोगों को राहत ही नहीं मिलेगी, बल्कि कारोबारी गतिविधियों को आगे बढ़ाने में आसानी भी होगी।

समझना कठिन है कि जब श्रमिक स्पेशल ट्रेनों की संख्या बढ़ाई जा रही है तब फिर अन्य ट्रेनों की संख्या बढ़ाने में संकोच क्यों किया जा रहा है? आखिर ऐसा तो है नहीं कि श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के मुकाबले सामान्य ट्रेनों में शारीरिक दूरी के नियम का पालन करना कठिन है। सच तो यह है कि स्थिति इसके उलट है। यह देखने में आ रहा है कि श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में शारीरिक दूरी के नियम का पालन कराना कहीं मुश्किल हो रहा है। चूंकि कोरोना वायरस के संक्रमण का खतरा आसानी से टलने वाला नहीं और उसके साये में जीवन-यापन करने के अलावा और कोई उपाय नहीं इसलिए सामान्य ट्रेनों के संचालन में और देरी नहीं की जानी चाहिए।