इससे निराशाजनक और कुछ नहीं हो सकता कि जब कांग्रेस से यह उम्मीद की जा रही थी कि वह अपने अधिवेशन के जरिये पार्टी और साथ ही देश को कोई राह दिखाने या फिर उत्साहित करने का काम करेगी तब उसके नेताओं की ओर से घिसी-पिटी बातों पर ही ज्यादा जोर दिया गया। इस क्रम में सबसे हैरानी इस पर रही कि राजनीतिक प्रस्ताव के जरिये इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन अर्थात ईवीएम पर हमला बोला गया। कांग्रेस ने ईवीएम पर निशाना साधते हुए जिस तरह मत पत्र के जरिये मतदान कराने की मांग की उससे उसने अपनी संकुचित सोच का ही परिचय दिया। ईवीएम पर सवाल उठाना एक गैर जरूरी मसले को तूल देने के अलावा और कुछ नहीं। यह केवल जनता को गुमराह करने के मकसद से किया जा रहा है, क्योंकि बहुत दिन नहीं हुए जब गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेसी नेताओं ने ही ईवीएम पर भरोसा जताया था। आखिर अचानक ऐसा क्या हो गया?

अब ईवीएम में खोट नजर आने लगी

क्या ईवीएम इसलिए अविश्वसनीय हो गई कि गोरखपुर और फूलपुर में कांग्रेस की जमानत जब्त हो गई? क्या कांग्रेस ने यह मान लिया है कि उसका चुनावी भविष्य उज्ज्वल नहीं और इसीलिए वह उस ईवीएम को खलनायक बनाने पर आमादा है जिसका चलन खुद उसके समय में शुरू हुआ था? अगर ईवीएम भरोसेमंद नहीं थी तो वह 2004 में सत्ता में कैसे आई? सवाल यह भी है कि अगर उसे ईवीएम में खोट दिख रही थी तो उसने दस साल के अपने शासन के दौरान मत पत्र से चुनाव क्यों नहीं कराए?

संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने की कोशिश

यह हास्यास्पद है कि कांग्रेसी नेता बड़ी आसानी से यह भूले जा रहे हैैं कि एक साल पहले पंजाब विधानसभा के चुनाव ईवीएम से ही हुए थे। ईवीएम पर निशाना साधकर कांग्रेस केवल चुनाव प्रक्रिया को ही कठघरे में नहीं खड़ी कर रही है। वह संवैधानिक संस्था निर्वाचन आयोग को भी बदनाम कर रही है। कहीं उसकी संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने की पुरानी प्रवृत्ति फिर से तो नहीं उभर रही? जो भी हो, इससे दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण और कुछ नहीं हो सकता कि संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थों के फेर में यह जानते हुए भी देश को बरगलाने का काम किया जा रहा है कि मत पत्र के जमाने में कैसे धांधली होती थी? यह समझ आता है कि बाहुबल और छल-छद्म से चुनाव जीतने का इरादा रखने वाले लोग ईवीएम को लेकर जनता के मन में भ्रम पैदा करें, लेकिन इससे शर्मनाक और कुछ नहीं कि देश का सबसे पुराना और सबसे अधिक समय तक सत्ता में रहा राष्ट्रीय दल भी यही काम करे।

बिना किसी ठोस आधार के ईवीएम को खारिज करना शरारत भरी राजनीति है

क्या कांग्रेस यह चाह रही है कि वे दिन फिर से लौट आएं जब जगह-जगह बूथ लूटे जाते थे? अगर नहीं तो फिर उसे ऐेसे सुबूतों के साथ सामने आना चाहिए था जिनसे यह संकेत भी मिलता कि ईवीएम से छेड़छाड़ संभव है। बिना किसी ठोस आधार के ईवीएम को खारिज करना शरारत भरी राजनीति ही है। अगर युवा नेता राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस इसी नतीजे पर पहुंची है कि ईवीएम से जनमत के विपरीत परिणाम आ सकते हैैं तो फिर यही कहा जाएगा कि यह दल जमीनी हकीकत से अनजान ही है।

[ मुख्य संपादकीय ]