चीन की आक्रामकता को लेकर मोदी सरकार को घेर रही कांग्रेस के लिए भाजपा के इस आरोप का जवाब देना कठिन हो सकता है कि आखिर राजीव गांधी फाउंडेशन को चीन से आर्थिक सहायता लेने की क्या जरूरत थी? यह महज राजीव गांधी के नाम पर बना फाउंडेशन नहीं है। यह वह फाउंडेशन है जिसकी मुखिया कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं और जिसके बोर्ड में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और अन्य अनेक कांग्रेसी नेता शामिल हैं। इस तरह की किसी संस्था की ओर से किसी भी विदेशी दूतावास से धन लेना कई सवालों को जन्म देता है और तब तो और भी जब वह विदेशी दूतावास चीन का हो।

पता नहीं राजीव गांधी फाउंडेशन ने चीनी दूतावास से धन लेना जरूरी क्यों समझा? यदि यह आवश्यक ही था तो फिर इस बारे में तभी पूरी सूचना सार्वजनिक की जानी चाहिए थी। अब तो आम धारणा तो यही बनेगी कि एक तरह से कांग्रेस पार्टी ने गुपचुप रूप से चीन से धन लिया। ध्यान रहे कि यह धन तब लिया गया जब कांग्रेस केंद्रीय सत्ता का नेतृत्व कर रही थी। इस बारे में कांग्रेस अपनी सफाई में बहुत कुछ कह सकती है, लेकिन उससे संतुष्ट होना कठिन है।

हैरत नहीं कि भाजपा के आरोप से तिलमिलाई कांग्रेस मोदी सरकार पर कुछ और तीखे हमले करने के लिए आगे आए। वैसे भी कांग्रेस और खासकर उसके नेता राहुल गांधी यह साबित करने में लगे हुए हैं कि प्रधानमंत्री ने चीन के आगे हथियार डाल दिए हैं। वह यह भी सिद्ध करने में तुले हैं कि चीन ने भारत की जमीन हथिया ली है। इस बारे में वह न तो प्रधानमंत्री के बयान को महत्व देने के लिए तैयार हैं और न ही उनके स्पष्टीकरण को।

पता नहीं वह सरकार पर अनावश्यक राजनीतिक हमले कर क्या हासिल करना चाहते हैं, लेकिन इसमें दो राय नहीं कि कांग्रेस का आचरण जाने-अनजाने चीन का दुस्साहस बढ़ाने वाला है। एक ऐसे समय जब देश चीन की खतरनाक आक्रामकता से दो-चार है तब जरूरत इस बात की है कि राजनीतिक एकजुटता का प्रदर्शन किया जाए ताकि दुनिया को यह संदेश जाए कि भारत चीनी सत्ता की गुंडागर्दी के समक्ष एकजुट है।

संकट के समय राजनीतिक कलह ठीक नहीं। कम से कम कांग्रेस सरीखे सबसे पुराने राजनीतिक दल को तो राजनीतिक परिपक्वता दिखानी ही चाहिए। यह हैरत की बात है कि अन्य दल गंभीरता का परिचय दे रहे हैं, लेकिन कांग्रेस ऐसा करने से इन्कार कर रही है। नि:संदेह भाजपा को कांग्रेस के राजनीतिक हमलों का जवाब देना ही होगा, लेकिन उसे इसकी भी चिंता करनी चाहिए कि चीन को लेकर देश में राजनीतिक एका का माहौल बने।