कांग्रेस का घोषणा पत्र जैसे लोक-लुभावन वादों से भरा हुआ है उसे देखकर पहला सवाल तो यही उठता है कि आखिर कोई भी सरकार महज पांच साल में इतने ढेर सारे काम कैसे कर सकती है? अगर कर सकती है तो फिर कांग्रेस ने आजादी के बाद करीब साठ साल तक सत्ता में रहने के दौरान वह सब करके क्यों नहीं दिखा दिया जो करने का वादा उसने अपने घोषणा पत्र में किया है? जब यह माना जा रहा था कि आखिरकार कांग्रेस के रणनीतिकार इस नतीजे पर पहुंच गए होंगे कि सब्सिडी बांटकर, रियायतें देकर और कर्ज माफी जैसी योजनाएं चलाकर देश को प्रगति के पथ पर नहीं ले जाया जा सकता तब कांग्रेस अपने घोषणा पत्र के जरिये इन्हीं पुराने तौर-तरीकों पर ही अधिक भरोसा करती दिख रही है।

यदि समाजवादी सोच वाले इन तौर-तरीकों से गरीबी दूर करने में मदद मिली होती तो भी उनकी सराहना की जा सकती थी, लेकिन जब ऐसा कुछ हुआ ही नहीं तब फिर पुरानी लीक पर चलने का कोई मतलब नहीं। ऐसा लगता है कि कांग्रेस यह देखने के लिए तैयार नहीं कि सब्सिडी और रियायत के सहारे जनता को संतुष्ट करने वाली नीतियों के देश और दुनिया में कैसे दुष्परिणाम हुए?

भले ही कांग्रेस यह कह रही हो कि घोषणा पत्र को तमाम विशेषज्ञों और साथ ही आम लोगों के साथ व्यापक विचार-विमर्श के बाद तैयार किया गया है, लेकिन उसमें मनमोहन सरकार के समय की राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की छाप ही अधिक नजर आ रही है। शायद इसी कारण किसान कर्ज माफी के वादे के साथ मनरेगा पर भी और जोर दिया गया है। इसके अलावा 20 प्रतिशत गरीब परिवारों को सालाना 72 हजार रुपये देने का वायदा तो प्रमुखता से है ही। ऐसा लगता है कि कांग्रेस ने जमीनी हकीकत और देश की जरूरत के हिसाब से घोषणा पत्र तैयार करने के बजाय उसे आकर्षक वादों से भरना बेहतर समझा। शायद इसी कारण वह लोक-लुभावन तो है, लेकिन भरोसा जगाने वाला नहीं। एक समस्या यह भी है कि उसमें कई विरोधाभास भी नजर आ रहे हैैं।

आखिर कर्ज माफी के साथ गरीब परिवारों को सालाना 72 हजार रुपये देने की योजना के लिए धन कहां से आएगा? इस तरह की योजनाएं शुरू होने पर राजकोषीय घाटे के नियंत्रण में रहने का तो कोई सवाल ही नहीं उठता। ध्यान रहे कि यह भी वादा किया जा रहा है कि शिक्षा पर जीडीपी का छह प्रतिशत खर्च किया जाएगा। शिक्षा पर खर्च बढ़ना ही चाहिए, लेकिन क्या लोक-लुभावन योजनाओं की झड़ी लगाकर इस वादे को पूरा करना संभव है? एक सवाल यह भी है कि कांग्रेस अपने ही बनाए आधार पहचान पत्र के इस्तेमाल को सीमित करने पर क्यों तुली है? यह ठीक नहीं कि आधार की उपयोगिता सिद्ध होने के बावजूद कांग्रेस इससे संबंधित कानून में बदलाव की बात कह रही है। यह भी अच्छा नहीं हुआ कि उसने अफस्पा कानून में तब्दीली का वादा करके एक विवाद को जन्म दे दिया। कांग्रेस अपने घोषणा पत्र को लेकर चाहे जो दावे करे, यह नहीं लगता कि उसने सुशासन का कोई ठोस दस्तावेज तैयार किया है।