कांग्रेस को एक बार फिर राफेल विमान सौदे की याद आ गई। हालांकि वह पहले भी रह-रह कर इस सौदे में कथित गड़बड़ी को उछालती रही है, लेकिन इस बार उसके नेताओं ने जिस तरह फ्रांस के राष्ट्रपति के भारत आगमन के मौके पर इस सौदे में घोटाले का आरोप उछाला उससे यही साबित होता है कि उसका मकसद सस्ती राजनीति करना ही अधिक है। क्या वह अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए फ्रांसीसी राष्ट्रपति को असहज करने में भी संकोच नहीं कर रही है? इस बारे में कांग्रेसी नेता ही बेहतर बता सकते हैैं, लेकिन इससे खराब राजनीति और क्या हो सकती है कि संकीर्ण राजनीतिक लाभ के लिए एक महत्वपूर्ण रक्षा सौदे को संदिग्ध बताने का काम किया जाए और वह भी संबंधित देश के शासनाध्यक्ष के नई दिल्ली में कदम रखने के चंद घंटे पहले? बिना किसी ठोस प्रमाण के रक्षा सौदों को संदिग्ध बताने की राजनीति विदेश नीति के साथ-साथ रक्षा नीति को भी प्रभावित करने का काम कर सकती है। अगर कांग्रेस को सचमुच यह लगता है कि राफेल सौदे में गड़बड़ी हुई है तो फिर उसे कुछ ऐसे प्रमाण उपलब्ध कराने चाहिए जो पूरी तौर पर न सही, प्रथमदृष्टया यह संकेत करते हों कि इस सौदे में बोफोेर्स तोप सौदे जैसा कुछ हुआ है। इतना ही नहीं उसे तो अदालत का दरवाजा भी खटखटाना चाहिए।

इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि पहले कांग्रेसी नेता प्रधानमंत्री के कथित दोस्त को लाभ पहुंचाने के लिए राफेल सौदे की शर्तों में बदलाव के आरोप के साथ सामने आए थे। अब वे यह रेखांकित कर रहे हैैं कि इस सौदे में 12600 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ है। सबसे हैरानी की बात यह है कि उन्होंने नुकसान का यह आकलन राफेल विमान बनाने वाली फ्रांसीसी कंपनी दासौ की कथित वार्षिक रपट के आधार पर किया है। कांग्रेस की मानें तो इस कंपनी ने अपनी वार्षिक रपट में खुद ही यह स्पष्ट कर दिया कि भारत को कथित तौर पर कहीं अधिक दाम में राफेल विमान दिए गए हैैं। क्या इससे हास्यास्पद और कुछ हो सकता है कि कोई कंपनी खुद ही इसका उल्लेख करे कि उसने किसी देश के साथ कहीं अधिक महंगा सौदा किया है?

कांग्रेस ने यह तो बहुत आसानी से कह दिया कि भारत की तुलना में मिस्र और कतर ने राफेल विमान कम कीमत पर खरीदे हैैं, लेकिन इस बारे में कुछ कहने की जरूरत नहीं समझी कि क्या मिस्न और कतर को मिले ये विमान उसी तकनीक और उपकरण से लैस हैैं जिनसे भारत आने वाले विमान सज्जित हैैं। कांग्रेस ने यह तो जिक्र किया कि पहले 126 राफेल विमान लिए जाने थे, लेकिन यह नहीं बताया कि वह 2008 से लेकर 2014 तक इस सौदे को मंजूरी क्यों नहीं दे सकी और वह भी तब भारतीय वायु सेना की युद्धक क्षमता बुरी तरह प्रभावित होती जा रही थी? चूंकि अब यह और स्पष्ट है कि कांग्रेस अपनी सुविधा से इस मसले को उछालती ही रहेगी इसलिए उचित यह होगा कि सरकार जरूरी गोपनीयता कायम रखते हुए कुछ ऐसे तथ्य सामने रखे जिससे इस सस्ती राजनीति का समापन हो सके।

[ मुख्य संपादकीय ]