यह घोर निराशाजनक है कि कांग्रेस हर मसले पर बोलने और इस क्रम में कुछ भी बेतुका कह देने की अपनी आदत छोड़ नहीं पा रही है। यह बिल्कुल भी अच्छा नहीं हुआ कि कांग्रेस ने अब सर्जिकल स्ट्राइक के वीडियो पर भी अपनी आपत्ति जता दी। अगर कांग्रेस को विभिन्न टीवी चैनलों की ओर से दो साल पुरानी सर्जिकल स्ट्राइक के वीडियो दिखाना रास नहीं आया था तो फिर उसे बेतुकी टिप्पणी करने के बजाय मौन रहना चाहिए था। क्या सर्जिकल स्ट्राइक के वीडियो दिखाए जाने पर यह कहना आवश्यक था कि सरकार सेना के पराक्रम का राजनीतिक फायदे के लिए बेशर्मी के साथ इस्तेमाल कर रही है।

क्या दो-चार सप्ताह बाद कहीं चुनाव होने जा रहे हैं जो कांग्रेस इस निष्कर्ष पर पहुंच गई कि सत्तापक्ष को राजनीतिक लाभ पहुंचाने के इरादे से सर्जिकल स्ट्राइक के वीडियो सामने आए? यह समझना भी कठिन है कि कांग्रेस प्रवक्ता इस नतीजे पर कैसे पहुंच गए कि मोदी सरकार सेना के प्रति दुराग्रह से भरी हुई है। क्या ऐसा कुछ बोलने के पहले इस बारे में कुछ भी नहीं सोचा जाता कि देश-दुनिया और खासकर पाकिस्तान में इसकी क्या प्रतिक्रिया होगी? ऐसा लगता है कि कांग्रेस ने दो साल पहले पाकिस्तान के खिलाफ हुई इस साहसिक और पहली बार सार्वजनिक की गई सैन्य कार्रवाई पर अपने नेता राहुल गांधी के इस बेजा बयान से कोई सबक नहीं सीखा कि प्रधानमंत्री सैनिकों के खून की दलाली कर रहे हैं।

राहुल गांधी ने ऐसा बयान देकर एक तरह से अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का ही काम किया था। हालांकि इस अमर्यादित बयान के लिए कांग्रेस की खासी छीछालेदर हुई थी, लेकिन शायद उसके नेताओं को वह याद नहीं रही। दुर्भाग्य से सर्जिकल स्ट्राइक पर सस्ती राजनीति कांग्रेस के साथ-साथ कई अन्य राजनीतिक दलों ने भी की। कुछ दलों के नेताओं ने तो इस सैन्य अभियान के प्रमाण ही मांग लिए थे। यह एक तरह से वही भाषा थी जो पाकिस्तान बोल रहा था।

विपक्षी राजनीतिक दलों से इसकी अपेक्षा नहीं की जाती और न ही की जानी चाहिए कि वे सत्तापक्ष के कार्यो की सराहना करें, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि उनकी ओर से सेना पर संदेह जताने का भी काम किया जाए। सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल खड़े करके ठीक ऐसा ही किया गया। कायदे से तो सर्जिकल स्ट्राइक के वीडियो सामने आने के बाद उन नेताओं को शर्मिदा होना चाहिए था जिन्होंने उस पर संदेह जताते हुए बेजा बयान दिए थे, लेकिन लगता है कि वे अपनी भयंकर भूल को भी बड़ी आसानी से भुला देते हैं।

क्या यह अजीब नहीं कि जब सर्जिकल स्ट्राइक हुई थी तब उस पर सवाल खड़े किए गए और जब उसके वीडियो सामने आ गए तो यह कहा जा रहा है कि आखिर इसकी क्या जरूरत थी? यह सवाल वे लोग न उठाएं तो बेहतर जो सर्जिकल स्ट्राइक पर बेतुके बयान दाग रहे और इस क्रम में उसे फर्जिकल स्ट्राइक तक करार दे रहे। यह सही है कि राजनीतिक दल बात-बिना बात बोलने के लिए जाने जाते हैं, लेकिन अच्छा होगा कि वे मर्यादा में रहना भी सीखें। इससे उनका ही भला होगा।