वित्तमंत्री अरुण जेटली से मुलाकात का दावा कर सनसनी फैलाने के उपरांत लंदन में रह रहे कारोबारी विजय माल्या ने जिस तरह यह माना कि यह तथाकथित मुलाकात संसद के गलियारे में अचानक हुई थी उसके बाद उस हल्ले-हंगामे का कोई मतलब नहीं रह जाता जो विपक्ष और खासकर कांग्रेस की ओर से मचाया जा रहा है। यह हास्यास्पद है कि वित्तमंत्री की ओर से यह स्पष्ट किए जाने के बाद भी उन्हें कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की जा रही है कि माल्या ने संसद परिसर में उनसे चलते-चलाते अनौपचारिक तौर पर अपनी बात कही थी। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को संसद सदस्य होने के नाते कम से कम इस बात से तो भली तरह अवगत होना चाहिए कि किसी सांसद के लिए संसद परिसर में किसी मंत्री से अपनी बात कहना कितना आसान है।

जब यह स्पष्ट है कि बतौर सांसद विजय माल्या की वित्तमंत्री से कोई औपचारिक मुलाकात नहीं हुई तब फिर यह साबित करने की कोशिश से क्या हासिल होने वाला है कि मुलाकात तो हुई ही थी? यह अजीब है कि राहुल गांधी यह भी आरोप लगा रहे कि खुद प्रधानमंत्री ने विजय माल्या को देश से बाहर जाने दिया और वित्तमंत्री से इस सवाल का जवाब भी चाह रहे कि माल्या को सुरक्षित रास्ता देने का फैसला उनका अपना था या फिर उन्होंने ऊपर यानी पीएम के निर्देश पर ऐसा किया? क्या यह बेहतर नहीं होता कि वह पहले इसे लेकर सुनिश्चित हो जाते कि किस पर क्या आरोप लगाना है? उनकी ओर से यह बताया जाए तो और अच्छा कि वह विजय माल्या के पहले वाले बयान को सही मान रहे हैैं तो बाद वाले को किस आधार पर खारिज कर रहे हैैं?

राहुल ने वित्तमंत्री से विजय माल्या की मुलाकात का गवाह जिस तरह पेश किया उससे तो यही लगता है कि इसका इंतजार हो रहा था कि कोई सनसनी फैलाए तो गवाह सामने लाया जाए। यह समझ आता है कि चुनावी माहौल के चलते राहुल इस या उस मसले को लेकर आरोप उछालने का कोई अवसर छोड़ना नहीं चाहते, लेकिन विजय माल्या के बहाने सरकार को घेरने के पहले उन्हें यह पता कर लेना चाहिए था कि माल्या को अनुचित तरीके से भारी भरकम कर्ज देने का काम किसकी कृपा दृष्टि से हुआ? यदि मनमोहन सरकार के समय बैैंक घाटे से घिरे माल्या के प्रति अतिरिक्त उदार नहीं होते तो शायद वह नौ हजार करोड़ रुपये की देनदारी से बचने के लिए लंदन नहीं भागे होते।

यह सही है कि माल्या के लंदन भाग जाने से सरकार की किरकिरी हुई, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि उनके खिलाफ शिकंजा कसने का काम भी इसी सरकार ने किया है। विजय माल्या की घेरेबंदी कर उन्हें केवल भारत लाने की ही कोशिश नहीं हो रही है, बल्कि उनसे बकाये कर्ज की वसूली के लिए भी हर संभव कदम उठाए जा रहे हैैं। फिलहाल यह कहना कठिन है कि माल्या को कब तक भारत लाया जा सकेगा, लेकिन यह सबको पता है कि उन्हें नियमों के विरुद्ध कर्ज देने का काम कब हुआ।