डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को साध्वी से दुष्कर्म के जुर्म में दस साल कारावास की सजा सुनाए जाने के बाद पंजाब, खासकर मालवा इलाके में सब कुछ ठीक ठाक रहा, यह सुकून की बात है। हालांकि ऐसी आशंका कम ही थी कि पहले पंचकूला में जैसी हिंसा व आगजनी हुई थी, वैसी यहां हो सकती थी, लेकिन फिर भी डर का माहौल था। ऐसा इसलिए क्योंकि चार दिन पहले जब इस दुष्कर्मी को दोषी करार दिया गया था, तब पंजाब में भी कई जगह आगजनी हुई थी। अदालत तमाम तर्को-तथ्यों के आधार पर निर्णय करती है इसलिए उसका सम्मान किया जाना चाहिए। फिलहाल यह कहा जा सकता है कि डेरा प्रमुख के समर्थकों ने संयम बरता और कानून को अपने हाथ में नहीं लिया। इसका कोई लाभ भी उन्हें नहीं होता बल्कि उल्टा डेरे को ही नुकसान होता। ऐसा इसलिए क्योंकि पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट पहले ही कह चुका है कि डेरा के समर्थकों द्वारा उपद्रव करने पर संपत्ति का नुकसान होता है तो उसकी भरपाई डेरे की जायदाद को बेचकर की जाएगी। नतीजतन हरियाणा में इस डेरे के तमाम नाम चर्चा घरों को खाली करवा दिया गया है। हालांकि पंजाब में सीलबंदी जैसा निर्णय तो नहीं हुआ लेकिन कई नामचर्चा घरों को खाली जरूर करवा लिया गया है। अभी उपद्रवियों द्वारा किए गए नुकसान की जायजा रिपोर्ट सौंपी जानी है उसके बाद ही आगे का रास्ता तय हो सकेगा। इस कार्य में राज्य सरकार को देर नहीं करनी चाहिए। साथ ही अभी यह नहीं मान लिया जाना चाहिए कि स्थिति बिल्कुल नियंत्रण में हो गई है। चौकसी अब भी रखनी होगी। पहली प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि जिस तरह इंटरनेट सेवाएं बहाल हुई हैं उसी तरह मालवा, विशेषकर बठिंडा-मानसा में बस व रेल सेवाएं बहाल हों। जनजीवन जल्द पटरी पर लौटना चाहिए। यह अच्छी बात है कि पंजाब में माहौल खराब नहीं हुआ और अब काफी हद तक सामान्य है लेकिन आम जन का यह विश्वास बना रहना चाहिए कि वह और उसकी संपत्ति सुरक्षित है। डेरा के समर्थकों को भी इसी तरह संयम बनाए रखना होगा ताकि वे अपना ही और नुकसान न करवा बैठें। कानून को अपना काम करने देना चाहिए, उसे अपने हाथ में लेने का परिणाम कभी ठीक नहीं हो सकता। उम्मीद है कि इस घटनाक्रम से सरकार के साथ-साथ डेरा और उसके समर्थक भी सबक सीखेंगे, साथ ही वह राजनेता भी जो वोटबैंक के लिए कानून-व्यवस्था को ताक पर रखवा देते हैं।

[ स्थानीय संपादकीय : पंजाब ]