उच्च शिक्षा को पटरी पर लाने के लिए सरकार को विश्वविद्यालयों पर ध्यान देने की जरूरत है। सिर्फ खानापूरी के लिए विश्वविद्यालयों की स्थापना से उद्देश्य पूर्ति नहीं हो सकती।
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प्रदेश में विश्वविद्यालयों के शैक्षणिक स्तर में सुधार और उन्हें उत्कृष्टता केंद्र बनाए जाने पर बार-बार जोर तो दिया जा रहा है, लेकिन इस दिशा में ठोस पहल होती दिख नहीं रही है। राज्य बनने के बाद सरकारी और निजी दोनों ही क्षेत्रों में बड़ी तादाद में नए विश्वविद्यालय खोले गए हैं, लेकिन इनमें से एक भी शायद ही उत्कृष्टता केंद्र होने का दावा करने की स्थिति में हो। वजह साफ है कि राज्य विश्वविद्यालयों की संख्या बढ़ाने के बजाए पहले से स्थापित या कई सालों से संचालित विश्वविद्यालयों में सुधार और उनकी बुनियादी जरूरतों को पूरी करने की ओर ध्यान ही नहीं दिया गया है। कई विश्वविद्यालयों के पास अपने भवन तक नहीं हैं। पहले से स्थापित विश्वविद्यालयों में ही अब तक संसाधनों की भारी कमी बरकरार है। शैक्षिक व शिक्षणेत्तर स्टाफ से लेकर ढांचागत कमियों को दूर करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए जा सके हैं। हालत ये है कि पर्याप्त स्टाफ तो दूर की बात, कई विश्वविद्यालय स्थायी कुलपतियों और कुलसचिवों के लिए तरस रहे हैं। विश्वविद्यालयों का शैक्षिक प्रशासन खुद ही औंधे मुंह है। कई विश्वविद्यालयों में कार्मिकों की नियुक्ति, वेतन, मानदेय देने में अनियमितताएं समेत विभिन्न स्तरों पर मनमानी के मामले खासी सुर्खियां बटोर रहे हैं। विश्वविद्यालयों को लेकर दूरदर्शिता का अभाव होगा तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर तो दूर की बात उनके सामने राष्ट्रीय स्तर पर पहचान का संकट है। राजभवन विश्वविद्यालयों के स्तर को सुधारने को कई बार निर्देश जारी कर चुका है। इसे लेकर राज्यपाल कई मर्तबा शासन और कुलपतियों की संयुक्त बैठकें कर चुके हैं। इसके बावजूद राजभवन के निर्देश बेमायने साबित हो रहे हैं। इच्छाशक्ति के अभाव में विश्वविद्यालय रोजगारपरक पाठ््यक्रमों को लेकर भी उदासीन बने हुए हैं। राज्य की परिस्थितियों और जरूरतों को ध्यान में रखकर नए पाठ््यक्रमों को तैयार करने में भी अपेक्षित रुचि अब तक दिखाई नहीं दी है। मौलिक और स्तरीय शोध कार्यों के लिए विश्वविद्यालयों और उनके परिसरों में माहौल नहीं बन पा रहा है। इसके लिए जिस शिद्दत से काम करने और विश्वविद्यालयों में शैक्षिक वातावरण को प्रोत्साहित किए जाने की जरूरत है, राज्य सरकार भी संभवत: उसके लिए तैयार दिखाई नहीं देती। दृढ़ इच्छाशक्ति की कमी सरकार के स्तर पर भी बनी हुई है। व्यवस्था सुधरे, इसके लिए सबसे पहले संकल्पशक्ति का प्रदर्शन खुद सरकार को करना है।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तराखंड ]