प्रदेश में ग्राम स्वराज अभियान के माध्यम से नौकरशाही और जनप्रतिनिधियों के बीच सामंजस्य बैठाने का प्रयास शुरू किया गया है। सरकार और संगठन के समन्वय से इसकी शुरुआत हुई है। सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी के सांसदों और विधायकों की शिकायत रही है कि जिलों में तैनात अफसर सुनते नहीं हैं। केंद्र सरकार से जारी ग्राम स्वराज अभियान के कार्यक्रमों में राज्य सरकार की भी हिस्सेदारी तय है। कार्यपालिका और विधायिका के बीच समन्वय बनाने की रणनीति के तहत इन आयोजनों में सांसदों, विधायकों और पार्टी के नेताओं को उपस्थित रहना है। शासन ने अफसरों को जवाबदेह बनाया गया है, उन्हें ही जनप्रतिनिधियों की मेजबानी करनी है। इसके साथ ही भाजपा संगठन के वरिष्ठ पदाधिकारियों को अलग-अलग कार्यक्रमों का समन्वयक बनाया है। मसलन, 18 अप्रैल को स्वच्छ भारत पर्व मनाया जाना है, 20 अप्रैल को उज्ज्वला पंचायत होनी है। इसी तरह 24 अप्रैल को पंचायती राज दिवस मनाया जाएगा, 28 अप्रैल से 30 अप्रैल तक ग्राम स्वराज, शक्ति अभियान एवं आयुष्मान भारत अभियान के लिए समन्वयकों ने नाम तय किए गए हैं।दरअसल, पिछले दिनों भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह राजधानी लखनऊ के दौरे पर आए थे। वहां उनसे जनप्रतिनिधियों ने शिकायत की कि जिलों में तैनात अफसर उनकी सुनते नहीं हैं।

सांसदों और विधायकों के इस आग्रह को पार्टी नेतृत्व ने गंभीरता से लिया और कार्यपालिका एवं विधायिका के बीच मेलजोल के लिए कार्यक्रम तय कर दिए। साथ ही संगठन के वरिष्ठ पदाधिकारियों को इन कार्यक्रमों के समन्वय की जिम्मेदारी सौंप दी गई। सिद्धांतत: सांसद, विधायकों के पास जनता का नुमाइंदा होने के कारण सरकार के कामकाज का फीडबैक रहता है। यह फीडबैक सरकार की सेहत के लिए भी अच्छा होता है। अगर वह इन अच्छाइयों अथवा कमजोरियों को जिला स्तर के अधिकारियों के साथ शेयर करते हैं तो परिणाम बेहतर होने ही हैं। इसी को जनता से जुड़ना कहा जाता है, अगर इस आवाज का प्रशासन पर कोई असर नहीं पड़ता सरकार को जनता से कटा हुआ मान लिया जाता है। समाज के बीच बनी धारणा ही चुनाव के समय अपना असर दिखाती है। उम्मीद है कि सत्तारूढ़ दल अपने जनप्रतिनिधियों के सहारे अपना अक्स देखने में कामयाब होगा।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तर प्रदेश ]