अयोध्या पहुंचे शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने राम मंदिर निर्माण के प्रति प्रतिबद्धता का प्रदर्शन करते हुए भले ही यह कहा हो कि वह किसी तरह का कोई श्रेय लेने नहीं आए हैैं, लेकिन सच यह है कि वह ठीक यही करने गए थे। चूंकि उनका इरादा यह प्रकट करना भी था कि वह मोदी सरकार के मुकाबले राम मंदिर निर्माण के प्रति कहीं अधिक प्रतिबद्ध हैैं इसीलिए उन्होंने मंदिर निर्माण की तिथि बताने का आग्रह किया। अच्छा होता कि इसके लिए वह सुप्रीम कोर्ट जाते। दरअसल यही काम उन्हें भी करना चाहिए जो मोदी सरकार पर कटाक्ष करते हुए यह सवाल उछाल रहे हैैं कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण कब होगा? ऐसे कटाक्ष करने वाले वही लोग हैैं जो भाजपा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद आदि की राम मंदिर निर्माण संबंधी मांग के विरोध में यह कहकर खड़े होते रहे हैैं कि माहौल बिगाड़ने और समाज का ध्रुवीकरण करने की राजनीति की जा रही है।

क्या यह विचित्र नहीं कि आज कांग्रेस के नेता यह तो कह रहे हैैं कि अयोध्या में मंदिर का निर्माण कांग्रेसी प्रधानमंत्री ही कराएगा, लेकिन इसके लिए ईमानदारी से कोई कोशिश करने से बच रहे कि अयोध्या विवाद का शीघ्र समाधान हो। आखिर इसे कौन भूल सकता है कि सुप्रीम कोर्ट में एक कांग्रेसी नेता ही यह दलील दे रहे थे कि अयोध्या विवाद की सुनवाई अगले आम चुनाव के बाद होनी चाहिए। यदि अपेक्षित समय पर अयोध्या विवाद की सुनवाई शुरू नहीं हो सकी तो वैसे ही लोगों के कारण जो इस विवाद का समाधान नहीं चाहते। कम से कम ऐसे लोगों को तो जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा यह सवाल पूछने का कोई अधिकार नहीं कि अयोध्या में राम मंदिर कब बनेगा?

इसमें कोई संशय नहीं कि अयोध्या मसले को सांप्रदायिक चश्मे से देखने और उसे हिंदू-मुस्लिम का सवाल बनाने वालों के कारण ही इस विवाद के समाधान में जरूरत से ज्यादा देर हो रही है। इस देरी के कारण अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की बाट जोह रहे जनमानस की बेचैनी बढ़ी है, लेकिन यह भी सही है कि वर्तमान परिस्थितियों में थोड़ी और प्रतीक्षा करने के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं, क्योंकि अध्यादेश या फिर कानून के जरिये मंदिर निर्माण की कोई भी कोशिश उस अदालत के दरवाजे ही पहुंचेगी जिसने जनवरी में इस मामले की सुनवाई करने को कहा है।

राम मंदिर निर्माण के प्रति संकल्प व्यक्त किया ही जाना चाहिए, लेकिन इस संकल्प को मजबूती तब मिलेगी जब उसे उन मूल्यों और मर्यादा से सुशोभित किया जाए जिनके लिए भगवान राम जाने जाते हैैं और जिसके चलते वह मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। राम के नाम पर किया जाना वाला हर कार्य मर्यादित ढंग से हो, इसकी जिम्मेदारी उन पर अधिक हैै जो राम मंदिर निर्माण के लिए अपनी प्रतिबद्धता प्रकट करने अयोध्या पहुंचे हैैं। इस प्रतिबद्धता का गरिमामय प्रदर्शन न केवल उपयुक्त वातावरण का निर्माण करेगा, बल्कि उन्हें हतोत्साहित भी करेगा जो अयोध्या विवाद के हल में अड़ंगा लगा रहे हैैं। यही वह उपाय भी है जिससे सुप्रीम कोर्ट को यह संदेश जाएगा कि इस मसले को अब और नहीं टाला जा सकता।