राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के क्रियान्वयन को लेकर जारी राज्यों की रैंकिंग में ओडिशा का शीर्ष स्थान पर आना उन राज्यों के लिए सबक बनना चाहिए, जो अपेक्षाकृत समर्थ और संपन्न माने जाते हैं। ओडिशा ने पहला स्थान हासिल कर यही प्रदर्शित किया कि वह निर्धन वर्गों के कल्याण के लिए कहीं अधिक प्रतिबद्ध है। इस रैंकिंग में दूसरा स्थान अर्जित कर उत्तर प्रदेश ने फिर से यह सिद्ध किया कि सबसे अधिक आबादी वाला राज्य होने के बाद भी वह जनकल्याणकारी योजनाओं को सही तरह से लागू करने में कहीं अधिक सक्षम है।

उत्तर प्रदेश ने अन्य जन कल्याणकारी योजनाओं को लाभार्थियों तक पहुंचाने में एक मिसाल कायम की है। वास्तव में इसी कारण योगी सरकार सत्ता में वापसी करने में सफल रही। उत्तर प्रदेश के बाद तीसरा स्थान आंध्र प्रदेश ने हासिल किया है, लेकिन उसका पड़ोसी और उससे ही अलग होकर बना तेलंगाना 12वें स्थान पर है। इसके बाद महाराष्ट्र, बंगाल और राजस्थान का नंबर दिख रहा है। नि:संदेह पंजाब का 16वें स्थान पर आना भी चकित करता है। इसी तरह इस पर भी हैरानी होती है कि पंजाब से भी पीछे हरियाणा, दिल्ली, छत्तीसगढ़ और गोवा दिख रहे हैं।

यह समझना कठिन है कि आखिर हरियाणा, दिल्ली, गोवा जैसे छोटे और संपन्न राज्य वैसा कुछ क्यों नहीं कर सके जैसा ओडिशा, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश करने में सफल रहे? वास्तव में यही सवाल केरल के संदर्भ में भी उठता है, जो 11वां स्थान हासिल कर सका। आखिर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के क्रियान्वयन में जैसी प्रतिबद्धता ओडिशा, उत्तर प्रदेश और आंध्र ने दिखाई वैसी अन्य राज्य क्यों नहीं दिखा सके? वास्तव में यह इस योजना के प्रति प्रतिबद्धता का ही प्रमाण है कि विशेष श्रेणी यानी पूर्वोत्तर, हिमालयी एवं द्वीपीय राज्यों में त्रिपुरा, हिमाचल और सिक्किम ने पहला, दूसरा और तीसरा स्थान अर्जित किया। इन राज्यों ने लाजिस्टिक की समस्याओं के बाद भी जिस तरह सामान्य श्रेणी के राज्यों के साथ अच्छी प्रतिस्पर्धा की, उसकी सराहना की जानी चाहिए।

इसी के साथ यह आशा की जानी चाहिए कि आने वाले समय में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के क्रियान्वयन में विभिन्न राज्यों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा कायम होगी। वास्तव में यह प्रतिस्पर्धा अन्य जन कल्याणकारी योजनाओं में भी दिखनी चाहिए। यह खेद की बात है कि कई राज्य संकीर्ण राजनीतिक कारणों से केंद्र सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं को लागू करने में न केवल ढिलाई का परिचय देते हैं, बल्कि कई बार तो उन्हें अपने यहां अमल में ही नहीं लाते। यह किसी से छिपा नहीं कि एक देश-एक राशन कार्ड योजना सभी राज्यों में तब लागू हो सकी, जब सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप किया।