दिल्ली में डीजल का इस्तेमाल कम होना सुखद है और यह दिल्लीवासियों के व्यवहार में आ रहे सकारात्मक बदलाव का संकेत है। डीजल का प्रयोग घटना दर्शाता है कि लोगों में पर्यावरण के प्रति चिंता बढ़ी है। इससे एक बेहतर भविष्य की उम्मीद जगी है। दिल्ली सरकार के अर्थशास्त्र और सांख्यिकी निदेशालय की ओर से जारी वर्ष 2017 की हैंडबुक के आंकड़ों में दिल्ली में डीजल का इस्तेमाल घटने की बात सामने आई है। वर्ष 2015-16 में जहां डीजल की खपत 15 लाख आठ हजार मीट्रिक टन थी, वहीं यह 2016-17 में घटकर 12 लाख 67 हजार मीट्रिक टन रह गई है।
दिल्ली में वायु प्रदूषण की बदहाल स्थिति किसी से भी छिपी नहीं है। इसमें संदेह नहीं कि सरकारें व संबंधित सरकारी एजेंसियां इसे लेकर चिंतित हैं और अदालतें व नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल भी वायु प्रदूषण के स्तर में कमी के लिए प्रयासरत हैं। इसमें भी संदेह नहीं कि वायु प्रदूषण का एक बड़ा कारक डीजल वाहन हैं, क्योंकि इन वाहनों से निकलने वाला धुआं न केवल आबोहवा को प्रदूषित करता है, बल्कि मानव स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव डालता है। यही वजह है कि सालों पहले सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में डीजल चालित बसों व ऑटो-टैक्सियों पर रोक लगा दी थी और सभी के लिए सीएनजी से चलना अनिवार्य कर दिया गया था। हालांकि निजी वाहन के तौर पर अभी भी डीजल वाहनों का प्रयोग होता आ रहा है और एसयूवी वाहनों के प्रति लोगों के आकर्षण ने कोढ़ में खाज का काम किया है। ऐसे में यदि लोग स्वत: पर्यावरण के प्रति संजीदा हो रहे हैं और डीजल वाहनों को छोड़ सीएनजी वाहनों या सार्वजनिक परिवहन की ओर उन्मुख हो रहे हैं तो यह न केवल स्वागतयोग्य है, बल्कि अनुकरणीय भी है। यदि आम जनता इसी तरह से वायु प्रदूषण के खिलाफ जंग में सरकारी एजेंसियों का सहयोग करे, तो इस समस्या पर बहुत जल्दी काफी हद तक काबू पाया जा सकता है।

[ स्थानीय संपादकीय: दिल्ली ]