इस पर हैरानी नहीं कि भारत इस नतीजे पर पहुंच रहा है कि लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन ने जो गतिरोध पैदा किया है वह लंबे समय तक जारी रह सकता है। चीन यथास्थिति को लेकर सहमत होने के बाद भी जिस तरह आनाकानी करता चला आ रहा है उससे यह साफ है कि उसके इरादे नेक नहीं और वह आसानी से मानने वाला नहीं।

चीन के अतिक्रमणकारी रुख को देखते हुए केवल यही आवश्यक नहीं है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सेना की चौकसी बढ़ाई जाए, बल्कि यह भी है कि उसके खिलाफ कूटनीतिक सक्रियता और अधिक बढ़ाई जाए। चीन भारत पर दबाव बनाने के लिए केवल सीमा पर ही आक्रामकता नहीं दिखा रहा है, बल्कि कश्मीर मामले में अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान की भाषा भी बोल रहा है।

 भारत केवल इतने से संतुष्ट नहीं हो सकता कि चीन के साथ पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक बार फिर मुंह की खानी पड़ी। यदि चीन भारत के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप करने से बाज नहीं आता तो फिर भारत को भी हांगकांग, तिब्बत के मसले उठाने में संकोच नहीं करना चाहिए। यह भी जरूरी है कि भारत एक-चीन नीति को खारिज करने के साथ ही दक्षिण चीन सागर मामले में इस पर जोर दे कि अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन हर हाल में किया जाए।

कूटनीतिक मोर्चे पर चीन के खिलाफ सक्रियता बढ़ाने के साथ ही उस पर आर्थिक निर्भरता कम करने के एजेंडे पर भी लगातार काम किया जाना चाहिए। हालांकि चीन से होने वाले निवेश पर लगाम लगाने के साथ ही उसके एप्स प्रतिबंधित किए गए हैं, लेकिन केवल इतना ही पर्याप्त नहीं।

 हुआवे सरीखी कंपनियों को प्रतिबंधित करने पर विचार किया जाना चाहिए। चूंकि चीन बिल्कुल भी भरोसे काबिल नहीं रह गया है इसलिए उसके समक्ष यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि वह न तो मित्र राष्ट्र जैसा व्यवहार कर रहा है और न ही मौजूदा हालात में उससे मित्रता संभव है। चीन के शातिर इरादों को देखते हुए यह भी जरूरी है कि लद्दाख सीमा के साथ ही अन्य क्षेत्रों में भी सेना की चौकसी बढ़ाई जाए।

 इसी के साथ उन कारणों का प्राथमिकता के आधार पर निवारण भी किया जाए जिनके चलते चीनी सेना लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर यथास्थिति से छेड़छाड़ करने में समर्थ हो गई। सरकार और सेना की साम‌र्थ्य पर संदेह करने का कोई कारण नहीं, लेकिन वास्तविक नियंत्रण रेखा पर वस्तुस्थिति को स्पष्ट करने का काम इस तरह होना ही चाहिए कि न तो किसी तरह के संशय की गुंजाइश रहे और न ही किसी को उसे लेकर सस्ती राजनीति करने का अवसर मिले।