बीते कुछ समय से चीन की हरकतों से यही साबित हो रहा है कि वह इस वर्ष भी भारत के लिए सिरदर्द बना रहेगा। पहले उसने अरुणाचल प्रदेश के 15 स्थानों का चीनी और तिब्बती भाषा में नामकरण किया, फिर अपने इलाके की सैन्य गतिविधियों का एक वीडियो यह बताते हुए जारी किया कि वह गलवन घाटी का है। यह तय है कि वह आगे भी भारत को उकसाने वाली हरकतें करता रहेगा। इसकी आशंका इसलिए भी बढ़ गई है, क्योंकि उसने अपने उस मनमाने भूमि सीमा कानून पर अमल शुरू कर दिया है, जिसका उद्देश्य भारत से लगती सीमा पर निर्माण कार्यो को तेज करना और विवाद वाले इलाकों में अपना दावा पेश करना है।

चंद दिनों पहले नई दिल्ली स्थित चीनी दूतावास ने भारतीय सांसदों के तिब्बत से जुड़े एक कार्यक्रम में शामिल होने पर भी आपत्ति जताई थी। चीन एक अर्से से न केवल तिब्बत को अपना अभिन्न अंग बता रहा है, बल्कि अरुणाचल प्रदेश पर भी दावा कर रहा है। यह ठीक है कि भारत ने हमेशा की तरह अरुणाचल पर चीन के फर्जी दावे को खारिज करते हुए कहा कि वहां के इलाकों के अपने हिसाब से नाम रखने से यह तथ्य नहीं बदलने वाला कि यह प्रदेश भारत का हिस्सा है और रहेगा, लेकिन केवल इतना ही पर्याप्त नहीं।

चूंकि चीन अब दबंगई के साथ दुष्प्रचार पर भी उतर आया है, इसलिए उसे न केवल उसी की भाषा में जवाब दिया जाना चाहिए, बल्कि तिब्बत, हांगकांग और ताइवान के मामले में पुरानी नीतियों पर नए सिरे से विचार करना चाहिए। इसी के साथ इस पर भी ध्यान देना होगा कि आखिर एक चीन की नीति पर प्रतिबद्धता जारी रखने का क्या औचित्य-और वह भी तब, जब चीनी नेतृत्व भारत की संप्रभुता की अनदेखी कर रहा है? यदि चीन भारत की संवेदनशीलता का ध्यान रखने से इन्कार कर रहा है, तब फिर इसका कोई अर्थ नहीं कि नई दिल्ली उसकी उकसावे वाली हरकतों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने से बचे।

क्या यह उचित नहीं होता कि गलवन घाटी के उसके भरमाने वाले वीडियो पर तत्काल प्रतिक्रिया व्यक्त की जाती? इसकी भी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि चीन ने इंटरनेट मीडिया के ट्विटर सरीखे जिन प्लेटफार्म को अपने यहां प्रतिबंधित कर रखा है, उन्हीं के जरिये भारत के खिलाफ दुष्प्रचार कर रहा है। विडंबना यह है कि इस दुष्प्रचार को कुछ विपक्षी दल तूल देकर चीन का मोहरा बन रहे हैं। ऐसे में भारत को चीन के मामले में अपनी नीति-रणनीति बदलनी होगी। इसके साथ ही चीन के खिलाफ विदेश और रक्षा नीति को भी और धार देनी होगी, क्योंकि यह अब और साफ है कि वह आसानी से मानने वाला नहीं।