लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीनी सेना की आक्रामक हरकतें जिस तरह बढ़ती जा रही हैं उससे यही स्पष्ट हो रहा है कि चीन कपट के साथ उन्माद से भी ग्रस्त हो गया है। उसकी सेना सीमा पर यथास्थिति बदलने की कोशिश भी कर रही है और यह ढोंग भी कर रही कि वह संयम का परिचय दे रही है। विगत दिवस उसकी सेना वास्तविक नियंत्रण रेखा पर न केवल हवाई फायरिंग करती दिखी, बल्कि लोहे की छड़ें लिए हुए भी नजर आई। वह इससे बौखलाई हुई है कि भारतीय सेना ने उसे उसी की भाषा में जवाब दिया और कुछ उन चोटियों पर कब्जा कर लिया जिन पर उसकी नजर थी।

चूंकि चीनी सेना की हरकतों से यह साफ है कि चीनी नेतृत्व उसे उकसा रहा है, इसलिए भारत को हर परिस्थिति का सामना करने के लिए न केवल तैयार रहना होगा, बल्कि यह भी प्रदर्शित करना होगा कि वह अपने कदम पीछे खींचने वाला नहीं है। इसके लिए उसे अपनी सैन्य तैयारियों में तेजी लानी होगी। यह तैयारी ऐसी होनी चाहिए कि टकराव की स्थिति में चीन भारतीय सेना की मारक क्षमता का अनुमान भी न लगा सके। इसके साथ ही लद्दाख में चीन की आक्रामकता का जवाब अन्य मोर्चे पर देने के विकल्प भी खुले रखे जाने चाहिए। ये विकल्प हिंद महासागर में भी खुले रखे जाने चाहिए, जहां से बड़ी संख्या में चीनी मालवाहक जहाज गुजरते हैं।

चीन को न केवल यह संदेश जाना चाहिए कि उसकी सैन्य शरारत का मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा, बल्कि यह भी कि उसकी तमाम बौखलाहट और गीदड़ भभकियों के बावजूद भारत एक जिम्मेदार राष्ट्र के तौर पर बातचीत के जरिये समस्या का समाधान करने को तैयार है। यह संदेश विश्व समुदाय को भी दिया जाना चाहिए, ताकि उसका ध्यान चीन की बदनीयती की ओर खींचा जा सके। बातचीत के जरिये समस्या समाधान की प्रतिबद्धता जताने के साथ-साथ चीन के समक्ष यह भी स्पष्ट करना जरूरी है कि उसका यह स्वांग चलने वाला नहीं कि उसके कब्जे वाली जमीन तो उसकी और शेष पर बातचीत संभव है। चीन के साथ कोई भी बातचीत उसकी शर्तों पर कदापि नहीं होनी चाहिए।

चीन को दबाव में लेने के लिए अब यह भी आवश्यक हो गया है कि भारत उसके कब्जे वाले अपने इलाकों को लेकर अपना दावा नए सिरे से रेखांकित करे। इसी तरह, यदि चीन अरुणाचल प्रदेश को भारतीय हिस्सा मानने से इन्कार करता है तो भारत के लिए भी यह सर्वथा उचित होगा कि वह तिब्बत पर चीन के कब्जे को अवैध बताने में संकोच न करे। कपटी चीन की संवेदनाओं को महत्व देने का अब कोई मतलब नहीं।