महिला सुरक्षा व गिरते लिंगानुपात के कारण साख गंवा चुका हमारा प्रदेश अब बच्चों की सुरक्षा को लेकर सवालों के घेरे में है। महिलाओं व बच्चों पर हिंसा मामले में प्रदेश की स्थिति राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक बुरी है। गुरुग्राम में स्कूल में बच्चे की हत्या ने इन सवालों को और तीखा कर दिया है। बाल विवाह के कलंक को अभी तक प्रदेश धो नहीं पाया है। इसके अलावा महिलाओं को सम्मान देने में भी हरियाणा की स्थिति बेहतर नहीं कही जा सकती। बच्चों की सेहत के आंकड़ों पर भी अतिरिक्त ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। विजन-2030 में सरकार भले ही हरियाणा को शांत और अपराध मुक्त बनाने का वादा कर रही हो लेकिन हकीकत यह है कि यह ग्राफ फिलहाल तो कम होता नहीं दिख रहा। आपराधिक मानसिकता के चलते सबसे अधिक निशाने पर महिलाएं और बच्चे हैं और उन्हें अतिरिक्त झेलना पड़ता है। ऐसे में बच्चों व महिलाओं की सुरक्षा को लेकर तुंरत ठोस निर्णय लिए जाने की आवश्यकता है।
प्रदेश सरकार महिलाओं की सुरक्षा के लिए महिला थानों की संख्या बढ़ा रही है। प्रत्येक उपमंडल में महिला थाने खोले जा रहे हैं। इसके अलावा पुलिस में महिलाओं की संख्या बढ़ाने का प्रस्ताव भी है। फिलहाल यह संख्या बढ़ाकर 10 फीसद की जा रही है और इसे 20 फीसद करने का लक्ष्य है। निश्चित तौर पर पुलिस में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाकर महिलाओं को अपना पक्ष रखने में आसानी होगी लेकिन महिलाओं व बच्चों के खिलाफ अपराध रोकने के लिए तुरंत ठोस कदम उठाने होंगे। इससे पूर्व आवश्यक है कि समाज की सोच में बदलाव लाया जाए अन्यथा सभी तैयारियां धरी रह जाएंगी। प्रदेश की बेटियों ने हर क्षेत्र में भले ही नाम कमाया हो पर आज भी अधिकतर मां-बाप बेटे की चाह में बेटियों की उपेक्षा करते दिखते हैं। यह सोच बच्चियों व इस समाज के लिए घातक है। सही है कि तस्वीर एक दिन में नहीं बदल सकती पर इसे बदलने के सामूहिक व सामाजिक प्रयास निरंतर होने चाहिए। सरकार भी कुछ ठोस कदम उठा सकती है और ऐसी योजनाएं लाई लाएं जिसमें बेटियों के पिता को सामाजिक सम्मान बढ़े। समाज में सम्मान बढ़ेगा तो यह सीधा उनकी मानसिकता पर बदलाव लेकर आएगा।

[ स्थानीय संपादकीय: हरियाणा ]