बागपत, हाथरस, कानपुर, रामपुर, चित्रकूट, भदोही, अमेठी, मैनपुरी, महोबा, सहारनपुर, इलाहाबाद, फीरोजाबाद और अब लखीमपुर। इन सभी शहरों में इस साल हर्ष फायरिंग की जघन्य वारदात हुईं लेकिन, लोगों ने कोई सबक नहीं लिया। उन्होंने अखबार में खबर पढ़ी और उसे तहा कर रख दिया। टीवी पर खबर देखी तो चैनल बदल दिया। दरअसल, हम ऐसे समाज हो गए हैं जो देख कर नहीं सीखता, जो दूसरों की गलतियों से सबक नहीं लेता। नतीजा इतना भयानक निकला कि सोमवार को लखीमपुर खीरी के एक विवाह मंडप में दूल्हे की मौत हो गई। हालांकि मौके से जो वीडियो बरामद हुआ है, उसके आधार पर दूल्हे के घरवाले षडयंत्र का आरोप लगा रहे हैं, फिर भी इतना तो सच है ही कि मंडप में गोली चली और मौत हुई। इस घटना के केवल एक दिन पहले इलाहाबाद और फीरोजाबाद में भी वैवाहिक समारोहों में चली गोलियों से दो लोगों की मौत हो चुकी थी। इस वर्ष केवल पंद्रह मार्च तक हर्ष फायरिंग की 11 वारदात हुई जिनमें आठ लोग गिरफ्तार भी हुए परंतु कहीं कोई अंतर न पड़ा।

यह हमारी सामंती सोच का ही कुफल है जो हम हंसी खुशी के ऐसे आयोजनों में भी रिवाल्वर और बंदूक लेकर जाते हैं। शक्ति प्रदर्शन की यह लालसा हर साल कई परिवारों की खुशियों को डस लेती है। यह भी नहीं कहा जा सकता कि कानून कमजोर है। सख्त आदेश हैं कि हर्ष फायरिंग के हर मामले में आरोपित का शस्त्र लाइसेंस रद करने के साथ ही मुकदमा भी दर्ज होगा लेकिन, इसके बाद भी घटनाएं थम नहीं रहीं। इस समस्या का हल निकालना है तो कानून के आगे देखना पड़ेगा। यह सामाजिक विसंगति है और समाज में ही इसका हल छुपा है। हर्ष फायरिंग के इस अराजक शौक को काबू करने के लिए उन्हें आगे आना होगा जिनके यहां शादी होनी है। उन्हें सुनिश्चित करना होगा कि उनके यहां बंदूकें प्रतिबंधित रहें। उन्हें देखना होगा कि मना करने के बाद भी यदि कोई बंदूक ले आया तो फिर वह बरात में शामिल न हो सके। गोली चलने पर जान चाहे जिसकी जाए, परेशानी लड़का-लड़की दोनों ही पक्षों को होती है।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तर प्रदेश ]