राज्य कांग्रेस मुख्यालय, जिसे सदाकत आश्रम भी कहा जाता है, में पार्टी नेताओं के बीच हुई मारपीट और गाली-गलौच पर सिर्फ शर्मिंदा हुआ जा सकता है। इस घटना से यह भी समझा जा सकता है कि राज्य में कांग्रेस की हालत इतनी पतली क्यों है। ऐसी ही नीतियों और कार्यशैली की वजह से यह पार्टी आम आदमी का भरोसा खो चुकी है। जहां तक मौजूदा घटना का सवाल है, इससे राज्य के बाहर यहां के राजनीतिक माहौल को लेकर नकारात्मक धारणा और अधिक मजबूत हुई होगी। अशोक चौधरी पिछले कई वर्षों से प्रदेश कांग्रेस का चेहरा रहे हैं। उनके नेतृत्व में ही पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस महागठबंधन का हिस्सा बनी और 27 विधानसभा सीटें जीतीं। अशोक चौधरी राज्य सरकार में मंत्री भी रहे। यह साफ दिख रहा था कि कुछ केंद्रीय नेताओं के इशारे पर स्थानीय कांग्रेस नेताओं का एक गुट लगातार चौधरी के खिलाफ अभियान चला रहा था और केंद्रीय नेतृत्व सब कुछ जानते हुए भी मौन साधे रहा। इसी का परिणाम है कि पार्टी बुरी तरह गुटबाजी में लिप्त हो चुकी है जिसका नजारा प्रदेश मुख्यालय में देखने को मिला। यह स्पष्ट नहीं है कि अशोक चौधरी किन पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त हैं, जिसका आरोप पार्टी के कई नेता उनके ऊपर लगा रहे हैं। यह भी आश्चर्यजनक है कि यदि चौधरी सचमुच पार्टी विरोधी कार्य कर रहे हैं तो पार्टी उन्हें बाहर का रास्ता क्यों नहीं दिखाती। वह जब तक पार्टी में हैं, उन्हें और उनके समर्थकों को कार्यालय में आने-जाने से कैसे रोका जा सकता है? कांग्रेस मुख्यालय पर 'नरेंद्र मोदी जिंदाबाद' की नारेबाजी से संकेत मिलता है कि पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ताओं का बड़ा वर्ग अपने नेतृत्व की कार्यशैली से त्रस्त होकर अन्य पार्टियों की ओर देख रहा है। सच्चाई तो यह है कि राज्य में कांग्रेस फिलहाल पूरी तरह भटकाव की शिकार हो गई है। उसे सूझ नहीं रहा कि वह किस दिशा में आगे बढ़े। अपना अस्तित्व बचाने के लिए पार्टी राजद का दामन थामे हुए है यद्यपि इसकी बड़ी कीमत पार्टी को अपनी छवि के रूप में चुकानी पड़ रही है। बेहतर होगा कि पार्टी का 'थिंक टैंक' मौजूदा दुविधा से उबरने के उपाय तलाशे और पार्टी की बची-खुची विश्वसनीयता सुरक्षित रखने का उपक्रम करे। हकीकत की अनदेखी करने से सिर्फ नुकसान होगा।
........................................
प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय के गेट पर पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा 'नरेंद्र मोदी जिंदाबाद' के नारे लगाना ऐसी घटना है जो पार्टी के भविष्य का संकेत दे रही है। कांग्रेस नेतृत्व ने अविलंब डैमेज कंट्रोल उपाय न किए तो पार्टी की रही-बची साख भी मिट्टी में मिल जाएगी।

[ स्थानीय संपादकीय: बिहार ]