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उत्तराखंड में इस बार 76 फीसद बारिश कम होने के कारण सरकार की चिंता बढ़ गई है। अब जरूरी यह है कि समय रहते आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिए।
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बर्फीली हवाओं की मार से जूझ रहे उत्तराखंड के लिए मौसम एक और चुनौती पेश कर रहा है। इस मर्तबा सर्दी में बारिश 76 फीसद कम रही है। ऐसे में सूखे की आशंका सिर उठाने लगी है। स्थिति की गंभीरता का एहसास इसी से हो जाता है कि सरकार ने अफसरों को सर्वेक्षण के निर्देश भी दे दिए हैं। गढ़वाल और कुमाऊं मंडल में सर्वे का कार्य जल्द शुरू होने वाला है। दरअसल, रबी की फसल के लिए सर्दियों की बारिश वरदान सिद्ध होती है, बारिश की कमी के कारण किसानों के सम्मुख संकट पैदा होने लगा है। इसका सबसे बड़ा असर गेहूं की पैदावार पर पड़ेगा। मौसम का यह मिजाज पहली बार नहीं है। राज्य गठन के बाद वर्ष 2000 से अब तक यह पांचवा मौका है जब हालात सूखे जैसे बनते जा रहे हैं। इससे पहले बारिश में कमी का यह आंकड़ा 2000 में 96, 2007 में 77, 2011 में 80 और 2016 में 81.6 फीसद रहा।

विशेषज्ञों के अनुसार आमतौर पर अक्टूबर से दिसंबर तक उत्तराखंड में औसतन 86 फीसद बारिश होती है, लेकिन इस बार यह मात्र करीब 24 फीसद रही। कृषि के मामले में देखें तो प्रदेश इस मामले में मैदानी इलाकों पर ही निर्भर है। विशेषकर हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर। इन क्षेत्रों में सिंचाई के साधन भी उपलब्ध हैं, जबकि पहाड़ी इलाकों में खेती पूरी तरह बारिश पर निर्भर है। आलम यह है कि कुल 95 में से 71 ब्लाक में खेती पूरी तरह बारिश के भरोसे है। पलायन की मार से त्रस्त उत्तराखंड जैसे राज्य में कृषि को लेकर हालात निराशाजनक होते जा रहे हैं। बीते 17 साल में अवमूल्यन की स्थिति यह है कि प्रदेश के सकल घरेलू उत्पाद में कभी खेती का हिस्सा 16 फीसद रहता था, अब घटकर आधा करीब आठ फीसद रह गया है। जाहिर है परिस्थितियां सरकार के लिए ऐसे समय में चुनौतीपूर्ण बन रही हैं, जबकि किसानों की दशा और दिशा सुधारने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने के लिए सस्ते ऋण के साथ ही खाद, उपकरण आदि पर सब्सिडी दी जा रही है। उत्तराखंड के परिपेक्ष्य में देखें तो यहां किसानों की संख्या करीब नौ लाख बारह हजार है। इनमें मध्यम और छोटी जोत के किसानों की संख्या अधिक है। इसमें कोई दो राय नहीं प्रकृति पर किसी का वश नहीं है, लेकिन मौसम के इस रुख को देखते हुए समय पर कदम उठाने जरूरी हैं। अधिकारियों का दायित्व है कि परिस्थितियों का आकलन कर जल्द से जल्द प्रारंभिक रिपोर्ट तैयार कर ली जानी चाहिए, जिससे समय पर केंद्र से मदद भी ली जा सके।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तराखंड ]