दावोस में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के समक्ष अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से कश्मीर को लेकर दिया गया बयान कितना निरर्थक है, इसका प्रमाण खुद अमेरिकी संसद को विदेश मामलों में सलाह देने वाली एजेंसी का यह आकलन है कि पाकिस्तान के विकल्प सीमित हैं।

इस अमेरिकी एजेंसी का यह भी मानना है कि कश्मीर पर बेलगाम हो रहे पाकिस्तान को इसलिए कुछ नहीं हासिल होने वाला, क्योंकि उसके साथ-साथ चीन का दामन भी दागदार है। इसका आभास चीन को भी हो जाना चाहिए, खासकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कश्मीर मसले पर चर्चा कराने की नाकाम कोशिश के बाद। ऐसी ही नाकामी का सामना मलेशिया और तुर्की भी कर चुके हैं जो इस्लामी जगत में अपनी अहमियत दर्शाने के लिए पाकिस्तान की हां में हां मिला रहे थे।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने में सफल रहने के बावजूद भारत को कूटनीति मोर्चे पर उसी तरह सक्रियता दिखानी होगी जैसी उसने गत दिवस अमेरिकी राष्ट्रपति के बयान को महत्वहीन करार देकर दिखाई।

कश्मीर पर अनावश्यक टीका-टिप्पणी कर रहे देश जितनी जल्दी यह समझें तो बेहतर कि भारत ने अनुच्छेद 370 हटाकर अपने उन्हीं अधिकारों का ही इस्तेमाल किया है जो एक संप्रभु देश के रूप में उसे हासिल हैं। यह बुनियादी बात अंतरराष्ट्रीय मीडिया को भी समझनी होगी, जो समस्या के मूल कारणों पर गौर किए बगैर यह दिखाने की कोशिश कर रहा जैसे भारत की केंद्रीय सत्ता ने कश्मीर के अधिकारों में बेजा कटौती कर दी है।

यह साफ है कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया का एक हिस्सा जानबूझकर यह समझने को तैयार नहीं कि कश्मीर समस्या वास्तव में जम्मू और लद्दाख की भी समस्या थी। वह अपने एजेंडे के तहत इस तथ्य से भी मुंह मोड़ रहा है कि अनुच्छेद 370 एक अस्थाई प्रावधान था।

अज्ञानता, अहंकार और ईर्ष्या से उपजे इस एजेंडे को नाकाम करने के लिए यह भी आवश्यक है कि कश्मीर के हालात सामान्य बनाने के लिए और अधिक तत्परता का परिचय दिया जाए। इस सिलसिले में केंद्रीय मंत्रियों को जम्मू-कश्मीर भेजने की पहल उल्लेखनीय है।

इससे एक ओर जहां राज्य के लोगों में यह भरोसा बढ़ेगा कि केंद्रीय सत्ता उनकी समस्याओं के समाधान के लिए प्रतिबद्ध है वहीं दूसरी ओर केंद्रीय मंत्री भी इससे अवगत होंगे कि उनके विभागों से संबंधित योजनाएं जमीन पर कितना असर कर रही हैं? अच्छा होगा कि केंद्रीय मंत्रियों के जम्मू-कश्मीर जाने का सिलसिला कायम रहे।

अब जब घाटी में आतंकी तत्व पस्त पड़ रहे हैं तब वहां के लोगों को केवल यह प्रतीति ही नहीं होनी चाहिए कि उनकी समस्याओं का समाधान केंद्र सरकार की प्राथमिकता है, बल्कि उन्हें अपनी समस्याएं हल होती भी दिखनी चाहिए।