खेती के लिहाज से उत्तराखंड पर भी केंद्र की नजरें इनायत हुई हैं। कृषि से जुड़ी योजनाएं ठीक से धरातल पर उतरें, इस दिशा में ठोस प्रयासों की जरूरत है।

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केंद्र सरकार का फोकस खेती-किसानी की तस्वीर संवारने पर है और इस लिहाज से उत्तराखंड पर भी नेमत बरसी है। अब तक छह हजार करोड़ रुपये की राशि कृषि और उससे जुड़े रेखीय विभागों की विभिन्न योजनाओं के लिए राज्य को मिली है। यही नहीं, आम बजट में परंपरागत कृषि, प्रधानमंत्री सिंचाई योजना समेत अन्य योजनाओं में भी उत्तराखंड को कुछ न कुछ मिलने की उम्मीद है। जाहिर है, इससे राज्य के 10 लाख से अधिक किसानों के मन में भी उम्मीदों का सागर हिलोरें ले रहा है। यही नहीं, केंद्र के 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने की कोशिशों के क्रम में राज्य सरकार ने भी खुद अपने स्तर से भी कई पहल की हैं। कहने का आशय यह कि डबल इंजन की सरकार से यहां भी खेती-किसानी के दिन बहुरने की उम्मीद जगी है, जो अभी तक खासकर पर्वतीय इलाकों में रसातल की ओर अग्रसर थी।

दरअसल, विषम भूगोल वाले उत्तराखंड में कृषि के सामने एक नहीं अनेक चुनौतियां खड़ी हैं। 95 में से 71 विकासखंड खेती के लिए पूरी तरह बारिश पर निर्भर हैं। इसके अलावा पर्वतीय इलाकों के गांवों से लगातार हो रहे पलायन के कारण खेती भी सिमटी है और जिन खेतों में कभी फसलें लहलहाया करती थीं, वे आज वीरान पड़े हैं। रही- सही कसर पूरी कर दे रहे हैं जंगली जानवर। ऐसे में पहाड़ में किसानों का खेती से मोहभंग होने लगा था। वहीं, मैदानी क्षेत्रों में भी बढ़ते शहरीकरण की मार खेती पर पड़ी है। इस परिदृश्य के बीच केंद्र और राज्य की खेती-किसानी को संवारने की कोशिशें संबल देने वाली हैं। बशर्ते, इसके लिए गंभीरता से धरातल पर कदम उठाए जाएं। ठीक है कि कृषि योजनाओं के लिए पर्याप्त बजट मिल चुका है, लेकिन इनमें किसानों को केंद्र में रखकर आगे बढऩा होगा। पहाड़, मैदान व घाटी वाले क्षेत्रों की परिस्थितियों के हिसाब से योजनाओं को आकार दिए जाने की आवश्यकता है। कृषि उत्पादों के लिए विपणन की व्यवस्था और उत्पाद का उचित दाम किसान को मिले, इस पर खास फोकस करने की जरूरत है। यही नहीं, उन जटिलताओं के निवारण को भी प्रभावी कदम उठाने होंगे, जो अब तक कृषि की राह में बाधक बनते आए हैं। तभी जाकर किसानों की आय दोगुना करने के प्रयास परवान चढ़ पाएंगे। उम्मीद की जानी चाहिए कि राज्य सरकार इस पर गंभीरता से चिंतन-मनन कर प्रभावी रणनीति के साथ आगे बढ़ेगी। आखिर, सवाल अन्नदाता से जुड़ा है।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तराखंड ]