बच्चियों से दुष्कर्म के अपराधियों को कठोर सजा देने के प्रावधान बनाना समय की मांग और जरूरत थी। यह अच्छा हुआ कि केंद्रीय कैबिनेट ने उस अध्यादेश को मंजूरी प्रदान की जो एक ओर जहां 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से दुष्कर्म करने वालों के लिए मौत की सजा तय करेगा वहीं दूसरी ओर दुष्कर्म के मामलों में न्यूनतम सात साल के सश्रम कारावास की अवधि को बढ़ाकर दस वर्ष या फिर आजीवन कारावास में तब्दील करेगा। महत्वपूर्ण केवल यह नहीं है कि दुष्कर्म के अपराधियों के लिए कठोर सजा के प्रबंध किए जा रहे हैं, बल्कि यह भी है कि दुष्कर्म के मामलों की जांच और फिर ट्रायल को एक तय अवधि में पूरा करना होगा। ऐसा वास्तव में हो और दुष्कर्म के अपराधियों को समय रहते उनके किए की सख्त सजा मिले, इसे सुनिश्चित करने के लिए पुलिस और अदालती तंत्र को कहीं अधिक सक्रियता का परिचय देना होगा। इसके लिए तंत्र में सुधार भी करना होगा, क्योंकि यह किसी से छिपा नहीं कि दुष्कर्म के मामलों में सजा का प्रतिशत बहुत ही कम है। स्पष्ट है कि पुलिस को कमर कसने की सख्त जरूरत होगी। इस जरूरत की पूर्ति हो, यह राज्य सरकारों को सुनिश्चित करना होगा। वैसे भी दुष्कर्म के बढ़ते मामले यही बता रहे हैं कि बच्चियों, किशोरियों और महिलाओं को अपनी हवस का शिकार बना रहे अपराधी तत्व बेलगाम हो गए हैं। उनकी घिनौनी हरकतें समाज को शर्मिदा करने के साथ देश की छवि को भी खराब करने का काम कर रही हैं। ऐसे तत्वों के साथ किसी भी तरह की नरमी नहीं बरती जानी चाहिए। ऐसे तत्वों को सबक सिखाने और उनके मन में खौफ पैदा करने की जरूरत है। इससे बड़ी विडंबना और कोई नहीं कि आज दुष्कर्मी तत्व बेलगाम हैं और समाज खौफ में है। यह स्थिति सभ्य समाज के विपरीत है।

आखिर आज के युग में ऐसी विकृत मानसिकता वाले लोग कैसे हो सकते हैं कि छोटी-छोटी बच्चियों को निशाना बनाएं? यह तो हैवानियत की पराकाष्ठा के अलावा और कुछ नहीं कि साल-दो साल की बच्चियां भी दुष्कर्म का शिकार हो रही हैं। यह दरिंदगी का बेहद घृणित रूप है और इसे रोकने के लिए एक ओर जहां यह आवश्यक है कि कानून कठोर हों वहीं यह भी कि उन पर सही तरह अमल भी हो और उनका दुरुपयोग न होने पाए। इस मामले में इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि देश को हिला देने वाले निर्भया कांड के बाद भी यौन हिंसा रोधी कानून कठोर किए गए थे, लेकिन स्थिति में तनिक भी बदलाव देखने को नहीं मिला। ऐसा इसीलिए हुआ कि हम सख्त सजा का कोई उदाहरण पेश नहीं कर सके। किसी को बताना चाहिए कि आखिर निर्भया के हत्यारों को अभी तक उनके किए की सजा क्यों नहीं मिली? यौन हिंसा के मामले में यह भी देखना होगा कि विकृत सोच इसलिए तो नहीं पनप रही कि समाज को बनाने-संवारने का एजेंडा किसी के पास नहीं रह गया है? यह जरूरी है कि देश बनाने की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले लोग समाज को बनाने की भी चिंता करें।