दिल्ली सरकार की नई शराब नीति में गड़बड़ी के आरोप में उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के आवास समेत कई अन्य ठिकानों पर सीबीआइ के छापों के बाद आम आदमी पार्टी और भाजपा के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला कायम होना स्वाभाविक है, लेकिन इससे किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सकता। नतीजे पर तो तभी पहुंचा जा सकता है, जब सीबीआइ उन आरोपों को अदालत के समक्ष सही साबित करे, जो शराब नीति में बदलाव के सिलसिले में सामने आए हैं।

दिल्ली के उपराज्यपाल की ओर से शराब नीति में घोटाले की जांच के आदेश देने के बाद जिस तरह उस नीति को बदल दिया गया, उससे कुछ सवाल अवश्य उठे हैं। इन सवालों की अनदेखी नहीं की जा सकती। इसी तरह इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि खुद दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव ने उपराज्यपाल को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में शराब नीति में गड़बड़ियों को रेखांकित किया है। इस सबके बावजूद सच-झूठ का निर्धारण अदालत में ही होगा। ऐसे में यह आवश्यक है कि सीबीआइ इस मामले की तह तक जाने का काम शीघ्रता से करे।

चूंकि इस समय कई नेताओं के खिलाफ सीबीआइ और ईडी की जांच जारी है, इसलिए विपक्षी दलों को यह कहने का अवसर मिल गया है कि केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग और मनमाना इस्तेमाल किया जा रहा है। यह कहना तो कठिन है कि जिन नेताओं के खिलाफ सीबीआइ और ईडी की जांच जारी है, उनमें से किसी का भी घपलों-घोटालों से कोई लेना-देना नहीं, क्योंकि कुछ मामलों में यह साफ दिखा है कि पद-प्रभाव का दुरुपयोग करके अकूत संपत्ति एकत्र की गई।

राजनीतिक भ्रष्टाचार एक सच्चाई है और उससे मुंह नहीं मोड़ा जा सकता। कई मामलों में यह देखने में आया है कि भ्रष्ट नेता और नौकरशाह मिलकर अवैध कमाई करते हैं। जब भी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई होती है तो यही शोर मचता है कि राजनीतिक बदले की भावना से काम किया जा रहा है। इस शोर से तभी बचा जा सकता है, जब जांच एजेंसियां भी तेजी से काम करें और अदालतें भी।

सच तो यह है कि ऐसी कोई व्यवस्था बननी चाहिए जिससे नेताओं और नौकरशाहों के मामलों की जांच कहीं अधिक प्राथमिकता के आधार पर हो। यह इसलिए और आवश्यक है, क्योंकि कुछ मामलों में उन नेताओं का भी महिमामंडन होता है, जिन्हें अदालतें सजा सुना चुकी होती हैं। ऐसा इसीलिए हो रहा है, क्योंकि उनके मामलों का निस्तारण उच्चतर अदालतों से होना शेष है। यह ठीक नहीं कि जब कभी किसी मामले में जांच एजेंसियां और निचली अदालतें अपना काम समय रहते सही से कर देती हैं तो उच्चतर अदालतें उनका निस्तारण करने में देर कर देती हैं।