देश के कई हिस्सों में नकदी संकट खड़ा हो जाने के बाद बैैंकों, रिजर्व बैैंक और सरकार की ओर से जो सफाई दी गई उसका मूल्य-महत्व तभी है जब इस संकट को जल्द सुलझा लिया जाए। अगर रिजर्व बैैंक और सरकार अपने वायदे पर खरी नहीं उतरी तो यह संकट और गहरा सकता है और देश के उन हिस्सों को भी अपनी चपेट में ले सकता है जहां यह अभी उतना गंभीर नहीं जितना बिहार, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के साथ देश के कुछ अन्य हिस्सों में दिख रहा है। ऐसा होने की आशंका इसलिए है, क्योंकि जैसे-जैसे यह खबर फैलेगी कि बैैंक और एटीएम नकदी की किल्लत से जूझ रहे हैैं वैसे-वैसे लोग बिना जरूरत भी नकदी से लैस होने की कोशिश कर सकते हैैं। ध्यान रहे कि नकदी संकट को लेकर कुछ विपक्षी दल आग में घी डालने वाला काम कर रहे हैैं। इन स्थितियों में केवल यह भरोसा दिलाने से बात नहीं बनेगी कि रिजर्व बैैंक के पास पर्याप्त नकदी है और उसकी आपूर्ति की जा रही है।

समझना कठिन है कि रिजर्व बैैंक समय रहते यह क्यों नहीं भांप सका कि देश के कुछ हिस्सों में नकदी की किल्लत बढ़ रही है? क्या बैैंकों ने उसे वक्त पर सूचना नहीं दी या फिर उसने इस सूचना को गंभीरता से नहीं लिया? एक सवाल यह भी है कि क्या रिजर्व बैैंक अभी तक नकदी पहुंचाने के अपने सिस्टम को दुरुस्त नहीं कर सका है? यह ठीक नहीं कि नकदी संकट के सिर उठा लेने और इस मसले पर विपक्षी नेताओं की जली-कटी सुनने के बाद सरकार को एक समिति बनाने की सूझी जो रिजर्व बैैंक के साथ मिलकर नकदी की उपलब्धता पर नजर रखेगी। क्या इसके पहले सरकार या रिजर्व बैैंक के पास ऐसा कोई तंत्र नहीं था जो नकदी के प्रवाह पर निगाह रखता? क्यानोटबंदी के अनुभवों से कोई सबक सीखने से इन्कार किया गया? किसी को इस सवाल का भी जवाब देना चाहिए कि यह जानना कठिन क्यों हो गया कि कहां कितनी नकदी खप रही है? संकट के सिर उठा लेने के बाद उसके समाधान के लिए समिति बनाना तो एक तरह से आग लगने के बाद कुआं खोदने वाला काम है। ऐसे काम तंत्र की ढिलाई के साथ-साथ सजगता के अभाव को ही रेखांकित करते हैैं।

यह ठीक नहीं कि सरकार और रिजर्व बैैंक यह बताने की स्थिति में नहीं कि करेंसी नोट की मांग अचानक क्यों बढ़ी? कम से कम अब तो इस सवाल का जवाब तलाशा ही जाना चाहिए कि नकदी की मांग में असामान्य उछाल क्यों आया-क्या कृषि उपज की बिक्री के चलते या फिर वित्तीय वर्ष के समापन के चलते अथवा अन्य किसी कारण से? कहीं यह अन्य कारण आगामी चुनाव तो नहीं? जब वित्त मंत्रालय के आर्थिक कार्य विभाग को यह अंदेशा है कि दो हजार रुपये के जितने नोट सिस्टम में डाले जा रहे हैं उससे कम ही वापस आ रहे हैं तब फिर तह तक जाने की जरूरत है। दो हजार रुपये को नोटों की जमाखोरी की आशंका पहले भी जताई जाती रही है, लेकिन लगता है कि उस पर ध्यान नहीं दिया गया।

[ मुख्य संपादकीय ]