हिमाचल प्रदेश हादसों का प्रदेश बनता जा रहा है। हर दिन प्रदेश के किसी न किसी हिस्से से हादसों की सूचनाएं बताती हैं कि लोग अपनी व दूसरों की जान को लेकर बेपरवाह हैं और सड़कों पर कई बार अराजकता की स्थिति दिखती है। प्रदेश में हादसे ऐसे नियमित क्रम की तरह हैं, जिन्हें रोका जाना चाहिए। सच्चाई यह है कि कि करीब 90 फीसद हादसे मानवीय चूक के कारण होते हैं। अन्य कारणों में सड़कों की खराब हालत व तकनीकी चूक जिम्मेदार रहती है। चिंताजनक है कि लगातार हादसों के बावजूद अभी तक कोई भी पक्ष सबक नहीं सीख रहा या सीखना ही नहीं चाहता। हादसों से प्रदेश का कोई जिला अछूता नहीं है, चाहे वे ठेठ पहाड़ी जिले हों या मैदानी माने जाने वाले जिले। बड़े हादसे तो अपनी बारंबारता स्वयं ही याद करवाते हैं, छोटे-छोटे हादसे भी कम नहीं हो रहे हैं। ऐसा कतई संभव नहीं है कि पुलिस जवानों को हर वक्त हर स्थान पर तैनात करके रखा जाए, ताकि हादसे रुकें। नूरपुर हादसे के जख्म अभी भरे नहीं थे कि बुधवार को हादसे में एसडीएम की पत्नी की मौत हो गई, जबकि उनकी बेटी व मां को ताउम्र न भूलने वाले जख्म मिले।

अब वीरवार को शिमला जिले के नेरवा और कुल्लू जिले के बंजार में दो हादसों के कारण आठ लोगों की जान चली गई। इसमें कोई दोराय नहीं होनी चाहिए कि हादसा हमेशा किसी न किसी पक्ष की लापरवाही से ही होता है। कारण जो भी रहें, लेकिन किसी परिवार को इसका दंश ङोलना ही पड़ता है। हादसों पर अंकुश लगाने के लिए जरूरी है कि सभी पक्ष अपना दायित्व जिम्मेदारी से निभाएं। इसके लिए हर वर्ग को जिम्मेदार बनना होगा और हादसे रोकने की दिशा में योगदान देना होगा। पुलिस यातायात नियमों को उल्लंघन करने वालों के साथ सख्ती से पेश आए व वाहन चालक भी समङों कि नियमों का पालन अपनी व दूसरों की सुरक्षा के लिए भी किया जाता है। यातायात नियमों की अनदेखी करने वालों पर सख्ती का अभियान सभी जिलों में चलना चाहिए। सबसे जरूरी है कि जब तक सड़क पर चलने और वाहन चलाने का सलीका नदारद रहेगा, तब तक सुरक्षित यातायात की कल्पना करना बेमानी है। हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य में तो नागरिकों को अधिक जिम्मेदारी से पेश आना चाहिए। हादसों के खिलाफ चेतना और सतर्कता सबसे जरूरी है। जब हर पक्ष सतर्क होगा तभी हादसे रुक सकेंगे। आखिर सवाल लोगों की कीमती जान का है।

[ स्थानीय संपादकीय: हिमाचल प्रदेश ]