हजारों करोड़ रुपये के घोटाले की जांच में सीबीआइ की भूमिका को लेकर पश्चिम बंगाल सरकार और केंद्र सरकार के बीच कोलकाता से लेकर दिल्ली तक जैसी तनातनी देखने को मिल रही है वह जितनी अभूतपूर्व है उतनी ही दुर्भाग्यपूर्ण एवं लज्जाजनक भी। किस्म-किस्म के घपलों-घोटालों में सीबीआइ की जांच को लेकर विभिन्न राज्य सरकारों ने पहले भी अपनी आपत्ति जताई है, लेकिन यह पहली बार है जब कोई राज्य सरकार अपनी पुलिस का इस्तेमाल सीबीआइ अधिकारियों को बंधक बनाने में करे। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने न केवल ऐसा किया, बल्कि पूरे मामले को राजनीतिक रंग देने के लिए धरने पर भी बैठ गईं। इससे भी खराब बात यह हुई कि इस धरने में कोलकाता के वह पुलिस आयुक्त भी शामिल हुए जिनसे सीबीआइ अधिकारी पूछताछ करना चाह रहे थे।

समझना कठिन है कि उन्होंने पुलिस अधिकारी के बजाय तृणमूल कांग्र्रेस के कार्यकर्ता की तरह से व्यवहार करना क्यों उचित समझा? यदि ममता बनर्जी को संघीय ढांचे और संवैधानिक मर्यादा की तनिक भी परवाह होती तो वह वैसा बिल्कुल भी नहीं करतीं जैसा किया। आखिर संघीय ढांचे के प्रति तनिक भी संवेदनशील कोई मुख्यमंत्री वैसी राजनीतिक अपरिपक्वता का परिचय कैसे दे सकता है जैसा ममता बनर्जी दे रही हैं? इससे भी हैरानी भरा सवाल यह है कि सीबीआइ जांच को मनमाने तरीके से रोकने के पश्चिम बंगाल सरकार के फैसले का विभिन्न विपक्षी दल समर्थन क्यों कर रहे हैं? क्या इसलिए कि आम चुनाव नजदीक आ गए हैं और ऐसे समय खुद को मोदी सरकार के खिलाफ दिखाना राजनीतिक रूप से लाभकारी हो सकता है? जो भी हो, यह देखना दयनीय है कि कई विपक्षी राजनीतिक दल और विशेष रूप से वह कांग्र्रेस भी ममता बनर्जी की मनमानी का पक्ष लेने में लगी हुई है जो एक समय उन पर घोटालेबाजों को बचाने का आरोप लगा रही थी।

क्या कांग्रेस एवं अन्य विपक्षी दल चुनावी चिंता में यह बुनियादी बात भूल गए कि सीबीआइ उन लोगों के खिलाफ जांच कर रही है जो लाखों गरीबों के हजारों करोड़ रुपये हड़प कर गए हैं? क्या इससे बुरी बात और कोई हो सकती है कि विपक्षी दल घोटालेबाजों का बचाव करते दिखें? ममता सरकार के साथ विपक्षी दलों का रवैया चिटफंड घोटालों में लुटे लाखों लोगों के साथ घोर अन्याय ही है। यह संभव है कि रोज वैली और सारधा घोटाले की जांच के क्रम में सीबीआइ अपना काम सही तरह न कर रही हो, लेकिन उसकी किसी कथित खामी के विरोध का यह मतलब नहीं कि उसके अधिकारियों को गिरफ्तार करने का काम किया जाए।

आखिर न्यायपालिका किसलिए है? इस मामले में इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि इन घोटालों की जांच अदालत के आदेश पर ही हो रही है। यदि ममता बनर्जी को सीबीआइ के तौर-तरीकों पर आपत्ति थी तो उन्हें अदालत जाना चाहिए था। चूंकि सीबीआइ अदालत पहुंच गई है इसलिए उसे न केवल यह देखना चाहिए कि वह अपना काम सही तरीके से करे, बल्कि उसके काम में अड़ंगा लगाने वालों को सबक भी सिखाना चाहिए। इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि सीबीआइ घोटालेबाजों को जल्द कठघरे में खड़ा करने में सक्षम हो।