दशकों से सिंचाई की समस्या से जूझ रहे बुंदेलखंड को संजीवनी तभी हासिल हो सकती है जबकि यहां नदियों को पुनर्जीवन दिया जाए। यह अच्छी बात है कि अब इसके लिए गंभीरता से शुरुआत हुई है। नदियों को एक-दूसरे जोड़कर ही इस क्षेत्र में पानी का संकट दूर किया जा सकता है और भारतीय सर्वेक्षण विभाग ने यहां की सभी नदियों का ग्रेविटी लेवल नापकर तकनीकी दिशा में कदम बढ़ाए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि नदियो को एक-दूसरे से जोड़ने के लिए ग्रेविटी लेवल बरकरार करके ही पानी की आपूर्ति की जा सकती है। वस्तुत: उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के संयुक्त प्रयास से ही इस बड़े काम को अंजाम दिया जा सकता है। दोनों सरकारें यहां की प्रमुख नदी केन, बेतवा गठजोड़ के लिए सैद्धांतिक तौर पर सहमत भी हैं। ऐसा होने पर बेतवा में पूरे वर्ष पानी रहेगा जो न सिर्फ भूगर्भ जलस्तर के लिए उपयोगी साबित होगा, बल्कि माइनरों से किसान खेतों की सिंचाई भी कर सकेंगे। बुंदेलखंड में सिंचाई का वर्तमान में हाल यह है कि अकेले हमीरपुर जिले में ही लगभग डेढ़ लाख हेक्टेयर भूमि की फसल मानसूनी बारिश पर निर्भर है।

केंद्र और प्रदेश सरकार ने किसानों का जीवन स्तर उठाने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के तहत ही सिंचाई पर ध्यान केंद्रित किया है। वन ड्राप, मोर क्राप अभियान के तहत केंद्र सरकार की अर्से से अटकी सरयू नहर परियोजना, बाण सागर, मध्य गंगा नहर परियोजना व बुंदेलखंड क्षेत्र की अजरुन सहायक जैसी परियोजनाओं को वर्ष 2019 तक पूरा करने के लिए बजट में प्राथमिकता दी गई है। इसके साथ ही गोमती सहित छह नदियों को पुनर्जीवित किया जाना भी सरकार की प्राथमिकता में है। गोमती नदी के उद्गम स्थल पीलीभीत से पुनर्जीवित करने का कार्य होगा। इसके अलावा अयोध्या में तमसा, वाराणसी के वरुणा, बदायूं में सोत व बरेली की अरिल और सई सरीखी नदियों को पुनर्जीवित करने का काम मनरेगा और सामाजिक सहयोग से होगा। छोटी नदियों को यदि पुनर्जीवन मिला तो यह किसानों के लिए भी नई जिंदगी मिलना जैसा होगा। सार्थक पक्ष यह है कि इसके लिए प्रयास गंभीर हैं।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तर प्रदेश ]