छल-कपट और लोभ-लालच से मतांतरण कराने के आरोप में गिरफ्तार किए गए दिल्ली के इस्लामिक दावा सेंटर के मौलानाओं से जैसी जानकारियां सामने आ रही हैं, वे न केवल चौंकाने वाली, बल्कि यह इंगित करने वाली भी हैं कि यह धंधा एक बड़ी साजिश के तहत बड़े पैमाने पर चल रहा था। भले ही कुछ उन लोगों की पहचान कर ली गई हो, जिनका मतांतरण कराया जा चुका है, लेकिन अभी यह कहना कठिन है कि इस गिरोह की जड़ें कितनी गहरी हैं और उनसे जुड़े लोग कितने लोगों का मतांतरण करा चुके हैं। इसकी अच्छी-खासी आशंका है कि जैसे नोएडा के मूक-बधिर छात्रों का मतांतरण कराया गया, वैसे ही देश के अन्य ऐसे ही विद्यालयों के छात्रों को निशाना बनाया गया हो। मूक-बधिर छात्रों के मतांतरण कराने का मकसद कुछ भी हो, इससे अधिक अमानवीय एवं अधार्मिक और कुछ नहीं हो सकता कि समाज के सबसे कमजोर तबके को कुत्सित इरादों के लिए इस्तेमाल किया जाए। सबसे खतरनाक बात यह है कि पुलिस के हाथ आए मौलानाओं का मकसद केवल मूक-बधिर छात्रों का मतांतरण कराना ही नहीं था, बल्कि उनकी सहायता से समाज और देश विरोधी गतिविधियों को अंजाम देना भी था। स्पष्ट है कि इस मतांतरण गिरोह की तह तक जाने और उसके मददगारों की पहचान करने की भी जरूरत है।

उत्तर प्रदेश पुलिस को अंदेशा है कि उसके हत्थे चढ़े मतांतरण गिरोह को विदेश से आर्थिक सहायता मिल रही थी। यदि यह अंदेशा सच साबित होता है तो इसका मतलब होगा कि देश विरोधी कार्यों के लिए विदेश से आने वाले धन की आमद पर अभी भी प्रभावी रोक नहीं लग सकी है। साफ है कि केंद्रीय एजेंसियों को नए सिरे से चेतना होगा। इसके अलावा सभी राज्य सरकारों के साथ-साथ केंद्र सरकार को भी इसके लिए सक्रिय होना होगा कि मतांतरण के घिनौने धंधे पर प्रभावी रोक कैसे लगाई जाए? धर्म प्रचार के नाम पर कुत्सित इरादों से कराया जाना वाला मतांतरण एक तरह से राष्ट्रांतरण का कृत्य है। दुर्भाग्य से देश में कई संगठन-समूह गुपचुप रूप से मतांतरण कराने में लगे हुए हैं। ऐसे तमाम समूह ईसाई और इस्लामी धर्म प्रचारकों के समर्थन और संरक्षण से चलाए जा रहे हैं, क्योंकि ईसाइयत और इस्लाम में मतांतरण एक धार्मिक आदेश एवं कर्तव्य है। आम तौर पर ऐसे समूहों के निशाने पर गरीब-असहाय और अशिक्षित तबके होते हैं। आदिवासी भी उनके खास निशाने पर हैं। न तो इसकी अनदेखी की जा सकती है कि किस तरह आदिवासियों को गैर हिंदू बताने की कोशिश हो रही है और न ही इसकी कि किस प्रकार देश के कई आदिवासी इलाकों में सामाजिक तानाबाना बदल गया है।