प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए एक बार फिर न केवल देश को आत्मनिर्भर बनाने की जरूरत पर बल दिया, बल्कि उद्योग जगत से इस अभियान को आगे बढ़ाने को भी कहा। वास्तव में यह समय उद्योग जगत को प्रेरित और प्रोत्साहित करने का है, लेकिन इसमें जिस नौकरशाही को महती भूमिका निभानी है उसके रुख-रवैये से यह नहीं लगता कि वह कोरोना संकट को एक अवसर में बदलने के लिए प्रतिबद्ध है।

इस आशय की बातें तो खूब हो रही हैं कि सरकारी तंत्र चीन से निकलने वाली कंपनियों को देश में आकर्षित करने के लिए सक्रिय है, लेकिन यह सक्रियता जमीन पर नहीं नजर आती। कायदे से तो जैसे ही यह भनक लगी थी कि कोरोना वायरस के प्रसार में चीनी नेतृत्व की संदिग्ध भूमिका के कारण बहुराष्ट्रीय कंपनियां चीन छोड़ने की तैयारी कर रही हैं वैसे ही भारतीय नौकरशाही को इन कंपनियों को आकर्षित करने में जुट जाना चाहिए था। यह निराशाजनक है कि ऐसा कुछ होता हुआ दिखा नहीं। चूंकि बहुराष्ट्रीय कंपनियां आनन-फानन चीन से निकलना चाहती हैं इसलिए जरूरत इसकी है कि उनके लिए अनुकूल माहौल तैयार करने का काम भी युद्ध स्तर पर किया जाए। ऐसा इसलिए और आवश्यक है, क्योंकि इन कंपनियों के पास ताईवान, इंडोनेशिया, थाईलैंड, वियतनाम आदि देश विकल्प के रूप में मौजूद हैं।

अच्छा हो कि हमारी नौकरशाही खुद से यह सवाल करे कि आखिर बीते दो-तीन महीनों में कितनी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने चीन से निकलकर भारत की ओर रुख किया है? नि:संदेह केंद्र और राज्य सरकारों को भी इसकी खोज-खबर लेनी चाहिए कि उनकी ओर से आपदा को अवसर में बदलने के बारे में जो कुछ कहा जा रहा है, नौकरशाही उस पर अमल कर रही है या नहीं? यदि यह समझा जा रहा है कि कुछ नीतिगत घोषणाएं कर देने से चीन छोड़ने को तैयार बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत आ जाएंगी तो ऐसा होने वाला नहीं है। इन नीतिगत घोषणाओं के अनुरूप कुछ ठोस काम भी होने चाहिए।

ध्यान रहे कि जब ये कंपनियां चीन गई थीं तो उसने उन्हें हर संभव आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराई थीं। यह सही है कि विदेशी कंपनियों के लिए आवश्यक सुविधाएं रातों-रात नहीं जुटाई जा सकतीं, लेकिन ऐसा करने की प्रबल इच्छाशक्ति का प्रदर्शन तो किया ही जा सकता है। इससे ही हालात बदलेंगे और चीन छोड़ने का मन बना चुकीं बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत आने के लिए तैयार होंगी। यदि इन कंपनियों को आकर्षित करने में देरी होती है और उन्हें भारत लाने में वांछित सफलता नहीं मिलती तो यह एक तरह से एक बड़े अवसर को खोने जैसा ही होगा।