आम तौैर पर विधानसभा उपचुनावों का एक सीमित महत्व ही होता है, लेकिन कई बार उनका महत्व बढ़ भी जाता है। उनकी महत्ता इससे भी तय होती है कि वे कहां और किस राजनीतिक माहौल मेंं हुए? यह स्वाभाविक है कि राजस्थान के रामगढ़ विधानसभा सीट के मुकाबले हरियाणा के जींद विधानसभा क्षेत्र में हुए उपचुनाव की अहमियत इसलिए अधिक है, क्योंकि वे तब हुए जब राज्य की खट्टर सरकार का कार्यकाल कुछ ही महीने का रह गया है। इसके विपरीत रामगढ़ में उपचुनाव तब हुए जब राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार को सत्ता संभाले एक माह भी नहीं हुए हैैं। वहां माहौल सरकार के पक्ष में होना और अभी सत्ता विरोधी रुझान की गुंजाइश न बनना स्वाभाविक है। ऐसे परिवेश में कांग्रेस प्रत्याशी की जीत से शायद ही किसी को हैरानी हो। वहां के मुकाबले जींद के नतीजे इसलिए चौंकाने वाले हैैं, क्योंकि एक तो भाजपा प्रत्याशी ने जोरदार जीत हासिल की और दूसरे राजनीतिक तौर पर कांग्रेस के भारी-भरकम उम्मीदवार रणदीप सिंह सुरजेवाला तीसरे स्थान पर नजर आ रहे हैैं। यह भी उल्लेखनीय है कि भाजपा ने यह सीट इंडियन नेशनल लोकदल से न केवल छीन ली, बल्कि उसके प्रत्याशी को पांचवें स्थान पर खिसका दिया।

यह सही है कि जींद में भाजपा के विजयी प्रत्याशी कृष्णा मिढ़ा इनेलो के दिवंगत विधायक के बेटे हैैं और उन्हें लोगों की सहानुभूति का भी लाभ मिला होगा, लेकिन इससे भाजपा के लिए इस जीत का राजनीतिक महत्व कम नहीं हो जाता। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि भाजपा प्रत्याशी ने कहीं बड़े अंतर से जीत हासिल की है। जींद विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव नतीजे को लेकर प्रदेश के साथ देश की दिलचस्पी इसलिए अधिक थी, क्योंकि एक तो खट्टर सरकार की लोकप्रियता का परीक्षण होना और दूसरे इसका भी पता लगना था कि विधानसभा चुनाव में बयार किस ओर बहने वाली है?

भाजपा प्रत्याशी ने यहां शानदार जीत हासिल कर न केवल यह रेखांकित किया कि खट्टर सरकार पर लोगों को भरोसा कायम है, बल्कि यह भी प्रकट किया कि हरियाणा में भाजपा उस संभावित माहौल का मुकाबला करने में भी सक्षम है जिसके तहत विपक्षी एकता को उसके लिए एक चुनौती माना जा रहा है। यह जीत जहां खट्टर सरकार के साथ-साथ भाजपा को उत्साहित करने और आत्मविश्वास से भरने वाली है वहीं कांग्रेस के साथ अन्य विपक्षी दलों को सबक सिखाने वाली है। शायद सबसे बड़ा सबक कांग्रेस के लिए है जिसने रणदीप सिंह सुरजेवाला को चुनावी मैदान में उतार कर यह दिखाने की कोशिश की थी कि वह उनकी जीत के साथ ही राज्य में सरकार बनाने की दावेदार बन जाएगी। यह दांव उलटा पड़ गया।

कांग्रेस के लिए रणदीप सिंह सुरजेवाला की हार इसलिए कहीं अधिक सालने वाली है, क्योंकि वह भाजपा को सीधी चुनौती भी नहीं दे सके। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैैं कि उनकी करारी हार के पीछे एक बड़ी वजह भितरघात भी है। ऐसा लगता है कि दिल्ली में बैठा कांग्रेस का नेतृत्व यह भी नहीं देख सका कि बगल के राज्य हरियाणा में उसकी जमीनी हकीकत क्या है? देखना है कि जींद के नतीजे से उसकी नींद टूटती है या नहीं?