उत्तर बिहार की लाइफलाइन महात्मा गांधी सेतु की सेहत को लेकर राजनीति किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। विकास में सड़क और पुल का ही बड़ा योगदान होता है। बिहार नौ साल से विकास की सीढिय़ों पर चढऩे की कोशिश कर रहा है। सड़कों की बदौलत जिला मुख्यालयों को राजधानी से जोडऩे का काम काफी हद तक पूरा हो चुका है। अब गांवों को जिला मुख्यालय से जोडऩे पर गंभीरता से कार्य चल रहा है, एक जिले-कस्बे को दूसरे से जोडऩे को छोटे पुलों के निर्माण में भी सरकार की रुचि देखी जा रही है, लेकिन बड़ी आबादी के आवागमन वाले महात्मा गांधी सेतु, राजेंद्र सेतु और कोईलवर पुल का विकल्प तैयार करना तो दूर, इसके मेंटेनेंस पर भी गंभीरता से ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इन सेतुओं को राजनीति का पुल मान एक तरह से इनके साथ दुव्र्यवहार किया जा रहा है। पिछले कुछ साल से गांधी सेतु का लगातार इलाज किया जा रहा है, पर सेहत और बिगड़ती जा रही है। बड़े वाहनों का परिचालन तो प्रतिबंधित है, सेतु की दोनों लेन तो ऐसी स्थिति में हैं कि उनपर भविष्य में भी पूर्ण आवागमन शुरू हो पाएगा, यह कहना मुश्किल है। पुल पर अक्सर जाम की स्थिति रहती है। मोकामा के राजेंद्र पुल की हालत भी खराब ही है, इसपर बड़े वाहनों का परिचालन प्रतिबंधित है। मरम्मत के लिए रेलवे ने राज्य सरकार से इसे एक साल तक वनवे करने की अनुमति मांगी है। अनुमति मिल जाती है तो आगामी एक दिसंबर से यह वनवे हो जाएगा। जिससे आम लोगों की परेशानी बढऩी तय है। कोईलवर पुल की मरम्मत का काम भी दो-दो घंटे परिचालन रोककर चल रहा है। इन बड़े पुलों पर प्रदेश और केंद्र सरकार की चिंता ऐसी है कि न तो कोई बड़ी बैठक होती है और न ही जनता के बीच बड़े नेता इनपर कुछ बोलते हैं।

महात्मा गांधी सेतु जवानी में ही बूढ़ा हो चला है। अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, लिहाजा इसे ले राजनीति गरमाने लगी है। नेताओं को यह चिंता सताने लगी है कि कहीं पुल पर आवाजाही बंद हुई तो जनता उन्हें कहीं का नहीं छोड़ेगी। हालांकि जनता खामोश है, उसने अभी तक विरोध के सुर नहीं सुनाए हैं। बहरहाल, सेतु को राजनीति के आईने में रखकर देखें तो सूबे के पथ निर्माण मंत्री ने हाल ही में कहा था कि पुल वेंटिलेटर पर है और इसके लिए केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी जिम्मेदार हैं, क्योंकि उन्होंने अपने मंत्रलय के 100 दिन के कामकाज पर वीडियो कांफ्रेंसिंग में कहा था कि वह इसका पुनर्निर्माण कराएंगे। उधर भूतल परिवहन मंत्रलय और राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के अधिकारी इसपर कहते हैं कि यह सही है कि इसके रखरखाव का जिम्मा एनएचएआइ के पास है। मेंटेनेंस के लिए पैसा वह देता है और बिहार सरकार अपनी एजेंसी से काम कराती है। 2001 से अब तक एनएचएआइ ने पुल की मरम्मत के लिए 208.38 करोड़ स्वीकृत किए जिसमें 127.79 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। 2012 में संप्रग सरकार में केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री रहे सीपी जोशी और तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीच हुई बैठक में यह एलान हुआ था कि गांधी सेतु के समानांतर कच्ची दरगाह के पास पुल बनाने को केंद्र से एनओसी मांगी जाएगी। गांधी सेतु को छह साल तक या समानांतर पुल के बनने तक मरम्मत कर चालू रखा जाएगा, लेकिन कच्ची दरगाह पर बनने वाला पुल शिलान्यास से आगे बढ़ नहीं सका। बेहतर यही होगा कि केंद्र और सूबे में सत्तासीन लोग पुलों को राजनीति से अलग रखें और संयुक्त रूप से ठोस रणनीति बनाएं, जिससे अवाम को परेशानी न हो।

[स्थानीय संपादकीय: बिहार]