संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कश्मीर मसले को उठाने की चीन और पाकिस्तान की कोशिश को मिली नाकामी यही बताती है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय कूटनीति को बड़ी सफलता मिली है। इसकी एक बड़ी वजह मोदी सरकार की ओर से दुनिया को यह समझाने में मिली सफलता ही है कि कश्मीर उसका आंतरिक मामला है और अनुच्छेद-370 को हटाने के फैसले पर किसी को आपत्ति जताने का कोई अधिकार नहीं। यह सामान्य बात नहीं कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन को छोड़कर लगभग सभी स्थायी एवं अस्थायी सदस्यों ने जम्मू-कश्मीर संबंधी भारत सरकार के फैसले का समर्थन किया। यह लगभग तय है कि सुरक्षा परिषद के इस स्पष्ट रुख के बावजूद पाकिस्तान का रोना-धोना खत्म होने वाला नहीं है, लेकिन उसे यह समझ आ जाए तो बेहतर कि कश्मीर पर बेसुरा राग अलाप कर वह भारत को तंग करने में सफल नहीं हो सकता।

पता नहीं पाकिस्तान को कब और कैसे सद्बुद्धि आएगी, लेकिन कम से कम चीन को तो यह आभास हो ही जाना चाहिए कि वह एक नाकाम देश पाकिस्तान का अनुचित समर्थन करके अपनी फजीहत ही करा रहा है। उसकी ऐसी ही फजीहत आतंकी सरगना मसूद अजहर के मामले में भी हो चुकी है। भले ही चीन भारत से दोस्ती बनाए रखने की बातें करता रहता हो, लेकिन उसकी नीयत पर संदेह स्वाभाविक ही है। यदि चीन वास्तव में भारत से मैत्री चाहता है तो उसके लिए यह समझना आवश्यक है कि उसकी तरह भारत भी एशिया की बड़ी ताकत हैैं और दोनों देश मिलकर न केवल एशिया, बल्कि विश्व समुदाय को दिशा दिखाने का काम कर सकते हैैं। यह तब होगा जब चीन भारत की भावनाओं का सही तरह से सम्मान करेगा। वह भारत से जैसा व्यवहार अपने लिए चाहता है वैसा ही व्यवहार उसे भारत के साथ करना होगा।

बेहतर हो कि वह इस बात को जाने कि उसकी ही तरह भारत भी एक पुरातन सभ्यता वाला देश है और दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक संबधों का एक लंबा इतिहास रहा है। इन्हीं सांस्कृतिक संबंधों के कारण चीन की जनता के एक बड़े वर्ग में भारत के प्रति मैत्री भाव है। इसी मैत्री भाव को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है, लेकिन दुर्भाग्य यह है कि चीनी नेतृत्व भारत को एक चुनौती समझ रहा है और इसी गलती के कारण वह अराजक, गैरजिम्मेदार और आतंकवाद के समर्थक पाकिस्तान को मोहरा बनाकर भारत की मुश्किलें बढ़ाने का मुगालता पाले हुए है। अगर वह इसी तरह केवल अपने आर्थिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए संकीर्ण मानसिकता का प्रदर्शन करता रहता है तो भारत से अपने संबंधों को सुधारने में तो नाकाम होगा ही, अपनी प्रतिष्ठा को भी क्षति पहुंचाने का काम करेगा।