अमेरिका के नए राष्ट्रपति के रूप में जो बाइडन ने इसलिए कांटों का ताज पहना है, क्योंकि उनके सामने जितनी गंभीर चुनौतियां घरेलू मोर्चे पर हैं, उतनी ही अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर भी। उन्हें एक ओर जहां बुरी तरह विभाजित अमेरिकी समाज को एकजुट करना है, वहीं दूसरी ओर अमेरिका की अंतरराष्ट्रीय साख को फिर से बहाल भी करना है। ये दोनों ही काम आसान नहीं। भले ही ट्रंप पराजित हो गए हों, लेकिन उनकी सोच को सही मानने वालों की कमी नहीं। इसीलिए यह कहा जा रहा है कि ट्रंप की पराजय का यह मतलब नहीं कि वह जिस विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं, उसका भी पराभव हो गया है। जिस तरह इस पर निगाहें रहेंगी कि बाइडन अमेरिकी समाज की बीच की खाई को पाटने क्या कदम उठाते हैं, उसी तरह इस पर भी कि अंतरराष्ट्रीय मामलों में उनकी पहल से विश्व व्यवस्था क्या आकार लेती है? यह तो तय है कि वह जलवायु परिवर्तन पर ट्रंप से भिन्न रवैया अपनाएंगे और विश्व स्वास्थ्य संगठन समेत अन्य वैश्विक संस्थाओं से अमेरिका के अलगाव को खत्म करेंगे, लेकिन इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता कि वह संयुक्त राष्ट्र में सुधार कर उसे प्रभावी बनाने की कोई ठोस पहल कर सकेंगे या नहीं? इस सवाल के जवाब में यह भी देखना होगा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की दावेदारी का वह किस हद तक समर्थन करते हैं?

नि:संदेह इसके प्रति सुनिश्चित हुआ जा सकता है कि बाइडन के दौर में अमेरिका से भारत के संबंध और सुधरेंगे। ऐसा इसलिए होगा, क्योंकि आज भारत को जितनी जरूरत अमेरिका की है, उतनी ही उसे भारत की भी है। इसके बाद भी यह स्पष्ट नहीं कि रूस से मिसाइल सिस्टम की खरीद जैसे मसलों पर बाइडन प्रशासन क्या रवैया अपनाता है? अफगानिस्तान और पाकिस्तान के मामले में भी अमेरिका के नए प्रशासन की नीति पर भारत की पैनी निगाहें रहेंगी। ऐसी ही निगाहें पश्चिम एशिया में अमेरिका की भूमिका को लेकर भी रहेंगी। भारत के साथ-साथ दुनिया की निगाहें इस पर खास तौर पर रहेंगी कि बाइडन बेलगाम चीन पर लगाम लगाने के लिए क्या करते हैं? चीन न केवल विश्व व्यवस्था को अपने हिसाब से चलाना चाहता है, बल्कि वह अमेरिका को तगड़ी चुनौती भी दे रहा है। यदि बाइडन के नेतृत्व में अमेरिका महामारी कोविड-19 पर गैर जिम्मेदाराना और एक तरह से आपराधिक रवैया अपनाने वाले बिगड़ैल चीन की लगाम कसने के लिए प्रतिबद्धता का प्रदर्शन नहीं करते तो अमेरिका के लिए अपना प्रभुत्व कायम रखना कठिन होगा। एक बेहतर दुनिया के लिए यह आवश्यक है कि अमेरिका लोकतांत्रिक शक्तियों को संबल प्रदान करता रहे।