सरकार का खजाना भरने के लिए कर संग्रह करने वाले विभागों ने अब एक ऐसे क्षेत्र पर ध्यान देने में जुटा है जिस पर पहले किसी की नजर नहीं पड़ी। आयकर और वाणिज्य कर विभाग ने वधू पक्ष द्वारा वर पक्ष को दिए जाने वाले दहेज पर निगाह टिकाई है। दोनों ही विभाग की विशेष जांच टीमों को शादी-समारोह स्थल पर नजर रखते हुए दहेज लदे वाहनों की जांच के आदेश दिये गये हैं। कहा गया है कि वाहनों पर लदे माल के पक्के बिल की जांच करते हुए वस्तुओं की कीमतों की भी बारीकी से जांच करें। यदि 50 हजार से अधिक का माल है तो ट्रांसपोर्ट के आधार पर संबंधित पक्ष से ई-वे बिल की मांग की जाये। शादी-विवाह की वस्तुओं की कीमतों का आकलन वाणिज्य और आयकर अधिकारी मिलकर करेंगे। पक्का बिल न दिखा पाने पर टैक्स के साथ जुर्माना भरना पड़ेगा। टैक्स देने में आनाकानी करने पर वाणिज्य कर विभाग तोहफे को जब्त भी कर सकता है। बिल में जीएसटीएन दर्ज नहीं हुआ तो भी मुसीबत बढ़ेगी। इसमें विक्रेता फंसेगा। वाणिज्य कर विभाग के अधिकारियों का कहना है कि पक्के बिल के साथ चेकिंग के दौरान ई-वे बिल के तहत रसीद दिखाने पर ही सामान ले जाने की अनुमति मिलेगी। शादी-विवाह में मिले सामान की जांच रास्ते में कहीं भी की सकती है। जांच में वर पक्ष से बिल लिया जाएगा।

अमूमन दहेज में मिलने वाले इलेक्ट्रानिक उपकरणों के पर्चे तो लोग गारंटी आदि की बाध्यता के कारण ले लेते हैं, लेकिन लकड़ी से बने फर्नीचर की खरीद-फरोख्त अधिकतर कच्चे बिल पर ही होती है। वर पक्ष को मिलने वाले तोहफों में काफी कुछ की कीमत तय नहीं होती। इनकी खरीद के साथ ग्राहक पक्के बिल की मांग नहीं करते जिसके कारण कारोबारी टैक्स की रकम बचा लेते हैं। जो रकम कर के रूप में सरकारी खजाने में जानी चाहिए वह उनकी जेब में जाती है। सरकार को कर मिले इसके पूरे प्रयास हों, लेकिन इसकी आड़ में आम जनता का शोषण न हो। नजर रखने की जरूरत होगी कि कुछ विभागीय अफसर अपनी अनुचित कमाई बढ़ाने के लिए इस कवायद का अपने हिसाब से फायदा न उठाने पायें।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तर प्रदेश ]