हरियाणा में मुख्यमंत्री के उड़ने दस्ते, स्वास्थ्य और पुलिस विभाग ने पूरे प्रदेश में झोलाछाप डॉक्टरों के क्लीनिक पर छापे मारने की जो कार्रवाई की है, वह बहुत पहले ही हो जानी चाहिए था। यह कार्रवाई जरूरी थी। टीमों ने 147 स्थानों पर छापे मारे कर 55 फर्जी डाक्टरों को गिरफ्तार किया है, लेकिन इनकी संख्या प्रदेश में पांच हजार से अधिक है। प्रदेश का ऐसा कोई जिला नहीं होगा, जहां इनका जाल न हो। ये ग्र्रामीण क्षेत्रों में तो हैं ही, शहरों में भी क्लीनिक खोल कर प्रैक्टिस करते हैं। इन डॉक्टरों के खिलाफ देर से कार्रवाई होने की वजह यह भी थी कि अभी तक ऐसा कोई नियम नहीं था, जिसके तहत इन डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई की जाती। अब प्रदेश में क्लीनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट लागू हो जाने से इन पर कार्रवाई की राह आसान हो गई है। ये डॉक्टर बिहार, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल जैसे प्रदेशों की फर्जी डिग्री के आधार पर बिहार व कुछ अन्य प्रदेशों की आयुर्वेदिक चिकित्सा परिषद में अपना रजिस्ट्रेशन कराते हैं। फिर प्रैक्टिस करने लगते हैं। कई केसों में जब इन डॉक्टरों की डिग्र्री की जांच हुई तो यह राज खुला। इनमें ज्यादातर ऐसे हैं जो हरियाणा में पैदा हुए, यहीं रहे, कभी बिहार नहीं गए तक नहीं, पर उनके रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट पर उनका निवास और क्लीनिक बिहार के किसी गांव में दर्ज दिखाया जाता है। इनकी दुकान इसलिए चल निकलती है, क्योंकि उच्च शिक्षा प्राप्त डॉक्टरों से इलाज महंगा होता है और सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों व स्टाफ की कमी दशकों से चली आ रही है। इसलिए वहां इलाज नहीं मिलता है और निम्न आय वर्ग के लोगों का इनके पास जाना मजबूरी हो जाती है। कई तो गंभीर बीमारियों के इलाज का दावा करते हैं। इनका इलाज भले ही सस्ता हो, लेकिन इन्हें दवाओं के साइड इफेक्ट्स और उनके दुष्प्रभावों का पता नहीं होता। इससे मरीज को कुछ दिन के लिए भले मुक्ति मिल जाए, लेकिन दवाओं के साइड इफेक्ट्स से वे दूसरी बीमारियों से ग्र्रस्त हो जाते हैं। इसलिए इनपर सख्ती और प्रतिबंध जरूरी है।

[ स्थानीय संपादकीय: हरियाणा ]