हर घर मे शौचालय बनाने के केंद्र सरकार की योजना जम्मू-कश्मीर में फलीभूत होती नजर नहीं आ रही है। बेशक कागजों में शौचालय बन गए हों, लेकिन राज्य में भाजपा-पीडीपी गठबंधन सरकार केंद्र की इस योजना को सही ढंग से क्रियान्वयन नहीं कर पाई है। नतीजा सामने है कि राज्य में 30 फीसद प्राइमरी से लेकर हायर सेकेंडरी स्कूल हैं, जहां शौचालय तक नहीं हैं। जिस कारण हर साल राज्य में छात्रों का ड्राप रेट बढ़ता जा रहा है। जम्मू-कश्मीर में हर साल दस फीसद छात्र बारहवीं कक्षा तक पढ़ाई करने के बाद इसे बीच में ही छोड़ देते हैं। प्राइमरी से आठवीं कक्षा तक पहुंचते पहुंचते आठ फीसद छात्राएं स्कूल जाना छोड़ देती हैं। कारण साफ है कि राज्य के सरकारी स्कूलों में संसाधनों का अभाव है। अभिभावकों को भी लगता है कि शिक्षकों की अनुपस्थिति, संसाधनों की कमी, बच्चों की असुरक्षा से बेहतर है कि बच्चों को स्कूल न भेजा जाए। उन्हें लगता है कि अगर वे चार जमात पढ़ भी लेंगे तो कोई पहाड़ नहीं खोद लेंगे। इसलिए सरकार को भी अभिभावकों की इस सोच को बदलने के लिए सरकारी स्कूलों के बुनियादी ढांचे को नया रूप देने की जरूरत है। केंद्र सरकार ने बेशक मिड डे मील जैसी कई योजनाएं शुरू की हैं, लेकिन इससे छात्रों का ड्राप रेट में कमी नहीं आई है। इससे तो अभिभावकों को भी यह समझ आने लगी है कि सरकार की योजनाएं केवल छलावा हैं। जब तक स्कूलों में शिक्षा का स्तर नहीं सुधरेगा तब तक अभिभावक भी बच्चों को स्कूल भेजने से कतराते रहेंगे। सरकार को चाहिए स्कूलों में शिक्षा के स्तर को बढ़ाएं। यह तभी संभव होगा जब स्कूलों में अनुशासन बना रहेगा। हर विषय के टीचर उपलब्ध होंगे। किसी भी छात्रा को बिना मर्जी के कोई सब्जेक्ट नहीं थोपा जाएगा। उनकी विषय में रुचि का खास ध्यान रखा जाएगा। अगर स्कूलों की बिल्डिंग खराब भी हो। अगर टींिचंग स्टाफ अच्छा होगा तो विद्यार्थी न चाहते हुए भी शिक्षा लेेने जरूर आएंगे। अगर दस दिन से टीचर अनुपस्थित है तो उनकी रुचि भी पढ़ाई में खत्म हो जाएगी और उन्हें लगेगा कि वे सिर्फ समय बर्बाद कर रहे हैं। छात्रों को पढ़ाई के लिए उत्साहित करने के लिए सरकार को उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरना होगा। स्कूलों में शौचालय और अन्य सुविधाओं को पूरा करने की जरूरत है। इसके लिए नई शिक्षा नीति की जरूरत है, जो दिखावटी न हो बल्कि उसमें गंभीरता दिखे।

[ स्थानीय संपादकीय: जम्मू-कश्मीर ]