निजी स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के दाखिलों की प्रक्रिया हर बार सवालों के घेरे में आ जाती है। इस बार भी दाखिला प्रक्रिया जारी है और करीब 70 हजार छात्रों ने बेहतर शिक्षा की चाह में निजी स्कूलों में दाखिलों के लिए परीक्षा भी दी है। पर अब निजी स्कूल उन्हें दाखिला देने को विरोध कर रहे हैं। धारा 134ए के तहत निजी स्कूलों को 10 फीसद सीटें आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों के लिए आरक्षित रखनी होती हैं और शिक्षा विभाग उनके लिए परीक्षा का आयोजन करता है। इसके बदले सरकार निजी स्कूलों को सहयोग राशि उपलब्ध करवाती है। यही सहयोग विवाद का कारण बन रहा है। निजी स्कूलों का कहना है कि यह सहयोग राशि बीते तीन साल से सरकार से मिल नहीं रही है और वह अन्य छात्रों पर इनका बोझ नहीं डाल सकते।

वहीं अभिभावक इस बात पर अड़े हैं कि निजी स्कूल दाखिलों से इन्कार नहीं कर सकते। सरकार व स्कूल अपने मसले स्वयं सुलझाएं और उसका खामियाजा बच्चें क्यों भुगतें। इस झगड़े के पीछे निजी स्कूलों के आर्थिक कारणों का हवाला दिया जा सकता है पर सबसे बड़ी वजह यह है कि प्रदेश के सरकारी स्कूलों में शिक्षा व्यवस्था र्ढे पर नहीं आ पा रही है। कुछ एकाकी प्रयासों को छोड़ दिया जाए तो कुछ सरकारी स्कूल में आधारभूत शिक्षा ही नहीं मिल पा रही है। ऐसे में अभिभावक बेहतर शिक्षा की चाह में निजी स्कूलों की ओर दौड़ लगाते हैं। ऐसे में 134ए ने आर्थिक तौर पर कमजोर परिवारों के लिए भी उम्मीद जगाई है। शिक्षा आधारभूत आवश्यकता है। सबको बेहतर शिक्षा का हक तभी मिल सकता है जब पूरा ढांचा बदले। व्यवस्था को इस बदलाव की जिम्मेवारी लेनी होगी।

[ स्थानीय संपादकीय: हरियाणा ]