कोलकाता नगर निगम के कुछ वार्ड डायरिया की गिरफ्त में आ चुके हैं। 650 से अधिक लोग इस रोग की चपेट में हैं। इनमें महिलाओं और बच्चों की संख्या अधिक है। नगर निगम के आठ वाडोर्ं में डायरिया का प्रकोप बढ़ गया है। महानगर से सटे बाघाजतिन स्टेट जनरल अस्पताल में डायरिया पीड़ितों की संख्या बढ़ती जा रही है। सोमवार सुबह तक डायरिया से ग्रसित 250 से अधिक मरीज स्टेट जनरल अस्पताल पहुंच चुके हैं। अधिकांश मरीजों को अस्पताल में भर्ती किया जा चुका है। राज्य के शहरी विकास मंत्री फिरहाद हकीम, तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य मनीष गुप्ता, कोलकाता के मेयर शोभन चटर्जी, कोलकाता नगर निगम के मेयर परिषद के सदस्य (स्वास्थ्य) अतीन घोष और वरिष्ठ माकपा नेता सुजन चक्रवर्ती ने बाघाजतिन अस्पताल जाकर मरीजों की हालत की जानकारी ली। लेकिन रोग का प्रकोप कम नहीं हुआ है। आश्चर्य की बात यह है कि मेयर शोभन चटर्जी ने नगर निगम द्वारा आपूर्ति किए गए पेयजल में किसी तरह की गड़बड़ी होने से इन्कार किया है। लेकिन रोग की चपेट में आए क्षेत्र में इतनी दहशत है कि लोग बोतलबंद पेयजल खरीद कर सेवन कर रहे हैं। इस कारण आस-पास के क्षेत्रों में बोतल बंद पेयजल की कीमतें एकाएक बढ़ गई है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि बोतलबंद पेय जल पीने से राहत मिल रही है। लेकिन इलाके के जो लोग निगम द्वारा आपूर्ति किए गए जल पी रहे हैं उन्हें पेट के रोग की शिकायत हो रही है। लोगों की बात पर गौर करे तो इससे साफ है कि निगम के पेय जल में अशुद्धता है। इसकी व्यापक जांच होनी चाहिए। दो-चार जगह से पानी का नमूना संग्रह कर जांच करने के बाद मेयर ने घोषणा कर दी की पानी में किसी तरह की अशुद्धता नहीं है। आखिर जब पानी में अशुद्धता नहीं है तो फिर क्यों निगम के कुछ वार्डो में डायरिया से ग्रसित लोगों की संख्या बढ़ कर लगभग हजार के करीब पहुंच गई।1नगर निगम के प्रभावित क्षेत्रों में डायरिया की रोकथाम के लिए डाक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों को लेकर युद्ध स्तर पर काम शुरू करना चाहिए। सबसे अधिक चिंता शिशुओं को लेकर है। इसलिए कि उनमें इस रोग से लड़ने के लिए प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। निगम को प्रभावित क्षेत्रों में शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने की भी व्यवस्था करनी चाहिए ताकि लोगों को महंगे बोतलबंद जल खरीदना न पड़े।

[ स्थानीय संपादकीय: पश्चिम बंगाल ]