पिछले साल जब सर्दियां शुरू हो रही थीं तभी अचानक पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पराली जलाने की समस्या उठी। पराली के धुएं और कोहरे ने कई शहरों में धुंध की खतरनाक चादर तान दी थी। इतना बुरा हाल था कि नोएडा और बुलंदशहर में दिन के बारह बजे भी शाम पांच का समय लगता। इस परेशानी से निपटने का शोर मचा तो पता चला कि वहां उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के न दफ्तर हैं और न लोग। जहां दफ्तर थे तो उनमें कहीं स्टाफ कम मिला और कहीं उपकरण। इन हालात में प्रदूषण से लड़ने की कल्पना भी मुहाल थी। उम्मीद की जा सकती है कि अब आगे ऐसा नहीं होगा। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपने कायाकल्प का एक वृहद प्रस्ताव तैयार किया है। प्रस्ताव शासन को भेजा गया है और जहां इसका पास हो जाना महज औपचारिकता है। प्रस्ताव के अनुसार बोर्ड हर शहर में अपना एक दफ्तर खोलना चाहता है। उसकी कोशिश अपने कर्मचारियों की संख्या तीन गुनी करने की है। इन दफ्तरों में सभी आवश्यक उपकरण भी लगाए जाएंगे। खास बात यह कि सभी तरह के प्रदूषण से निपटने के लिए पहली बार बोर्ड में नई विंग बनाई जा रही है।

यह पहल स्वागत योग्य है। अभी तो लखनऊ मुख्यालय के अलावा सिर्फ 28 जिलों में बोर्ड के दफ्तर हैं। जिस तेजी के साथ शहरों का विस्तार हो रहा है और चारों तरफ कंक्रीट के जंगल खड़े हो रहे हैं, उसी रफ्तार से प्रदूषण में भी इजाफा हो रहा है। इस पर नियंत्रण पाने के लिए कोई ठोस योजना अभी तक कारगर नहीं हो सकी है। गंगा की निर्मलता के लिए न जाने कितने सालों से केंद्र और प्रदेश सरकार के स्तर पर अभियान चलाए जा रहे हैं लेकिन, उनके नतीजे सकारात्मक नहीं हैं। कल-कारखानों और टेनरियों से निकलने वाला कचरा सीधे गंगा समेत अन्य नदियों में फेंका जा रहा है। यह मानने में कोई हर्ज नहीं कि हर जिले में बोर्ड का ऑफिस खुल जाने से वह अब बेहतर मॉनीर्टंरग और कार्रवाई कर सकेगा। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरह राज्य सरकार को पर्यावरण विभाग को भी शक्ति संपन्न बनाने पर विचार करना चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तर प्रदेश ]