सरकार के साथ-साथ समाज के लिए इससे राहतकारी और कुछ नहीं हो सकता कि आर्थिक विकास दर के ताजा आंकड़े आर्थिक सुस्ती के माहौल से मुक्ति को बयान करते दिख रहे हैैं। पांच तिमाहियों के बाद जीडीपी दर में आई 6.3 फीसद की उछाल न केवल अर्थव्यवस्था की रफ्तार में कमी के सिलसिले के खत्म होने का सूचक है, बल्कि इसकी भी कि नोटबंदी और जीएसटी के असर से छुटकारा मिल गया है। हालांकि यह पहले दिन से तय था कि नोटबंदी सरीखे बड़े फैसले का असर जीडीपी दर में गिरावट के रूप में अवश्य दिखेगा, लेकिन इसके बावजूद नोटबंदी के आलोचक यह माहौल बनाने में जुटे हुए थे कि इस फैसले ने अर्थव्यवस्था का बेड़ा गर्क कर दिया और अब बेहतर हालात बनने मुश्किल हैैं। दुर्भाग्य से कुछ ऐसा ही काम जीएसटी के अमल के बाद भी किया गया। सच तो यह है कि यह काम अभी भी जारी है। सबको पता है कि जीएसटी के रूप में सबसे बड़े टैक्स सुधार को कांग्रेस के नेता किस तरह गब्बर सिंह टैक्स बताने में लगे हुए हैैं। यह आर्थिक मामलों में नारेबाजी की सस्ती राजनीति के अलावा और कुछ नहीं। कहना कठिन है कि जीडीपी के ताजा आंकड़े सामने आने के बाद गुजरात में जीएसटी को चुनावी मसला बनाने का काम जारी रहेगा या फिर बंद हो जाएगा, लेकिन इतना अवश्य है कि केंद्र सरकार को केवल इतने से संतुष्ट नहीं होना चाहिए कि जीडीपी में गिरावट का सिलसिला थम गया। उसे यह सुनिश्चित करने के लिए हर संभव कदम उठाने चाहिए कि जीडीपी की दर में और अधिक तेज वृद्धि हो।
यह अच्छी बात है कि जीएसटी में सुधार का सिलसिला अभी भी कायम है और उसके और बेहतर नतीजे सामने आने की उम्मीद है, लेकिन जितना जरूरी यह है कि उद्योग-व्यापार जगत की गतिविधियां तेजी पकड़ें उतना ही यह भी कि कृषि क्षेत्र मुश्किलों से निकले। यह ठीक नहीं कि जीडीपी के जिस आंकड़े में पांच तिमाहियों के बाद उत्साहित करने वाली उछाल दिखी उसमें कृषि क्षेत्र में सुस्ती दिख रही है। कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर न केवल 1.7 फीसद रही, बल्कि वह पिछली तिमाही से कम भी दिखी। एक ऐसे समय जब सरकार बार-बार यह कह रही है कि वह अगले पांच वर्षों में किसानों की आय दोगुना करना चाहती है तब कृषि क्षेत्र की विकास दर औसत विकास दर से कदमताल करते हुए दिखना आवश्यक है। नि:संदेह किसी भी क्षेत्र में एक-दो तिमाही के आंकड़ों के आधार पर अंतिम निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता, लेकिन आखिर इससे कौन इन्कार करेगा कि कृषि क्षेत्र का सुदृढ़ होना आवश्यक है। ऐसा होना इसलिए और भी जरूरी है, क्योंकि एक बड़ी आबादी अभी भी कृषि क्षेत्र पर निर्भर हैै। इस आबादी की कृषि पर निर्भरता तब कम होगी जब उद्योग-व्यापार जगत में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। कारोबारी माहौल में सुधार और अब जीडीपी दर में वृद्धि के नतीजे के तौर पर रोजगार के अवसर बढ़ने ही चाहिए। इसलिए और भी, क्योंकि रोजगार के अवसरों में कमी एक मसला बन रही है। जीडीपी के बेहतर आंकड़े रोजगारों के नए अवसरों के रूप में सामने आना समय की मांग भी है और जरूरत भी।

[ मुख्य संपादकीय ]