अमेरिकी शहर ह्यूस्टन में 'हाउडी मोदी' कार्यक्रम का आयोजन महज वहां रह रहे भारतीयों के बीच भारतीय प्रधानमंत्री का संबोधन मात्र नहीं, बल्कि इसका भी परिचायक है कि एक नए भारत का उदय हो रहा है। इस कार्यक्रम की महत्ता इसलिए और अधिक बढ़ गई, क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी इसमें शामिल होना आवश्यक माना। वैसे तो ब्रिटेन में भारतीय प्रधानमंत्री की इसी तरह की एक सभा में तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री भी उपस्थित हुए थे, लेकिन ह्यूस्टन में अमेरिकी राष्ट्रपति की भागीदारी कहीं अधिक व्यापक प्रभाव छोड़ने वाली है।

इस कार्यक्रम में अमेरिकी राष्ट्रपति की उपस्थिति की एक वजह वहां होने वाले राष्ट्रपति के चुनाव में भारतीयों को अपनी ओर आकर्षित करना हो सकती है, लेकिन इसी के साथ यह भी तो प्रकट होता है कि अमेरिका दुनिया को यह संदेश देना चाहता है कि वह भारत के साथ खड़ा है। यह शायद पहली बार है जब अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपनी धरती पर किसी अन्य देश के शासनाध्यक्ष के सार्वजनिक कार्यक्रम को संबोधित करना बेहतर समझा। यह केवल अमेरिका में रह रहे लाखों भारतीयों के बढ़ते रुतबे को ही रेखांकित नहीं करता, बल्कि यह भी बताता है कि भारत और अमेरिका के आपसी संबंध कहीं अधिक प्रगाढ़ हो रहे हैं। यह संभव ही नहीं कि विश्व समुदाय इस प्रगाढ़ता की अनदेखी कर सके।

स्पष्ट है कि यह आयोजन दुनिया को भारत के बढ़ते कद से भी परिचित कराएगा और उसकी साम‌र्थ्य से भी। इससे बेहतर और कुछ नहीं कि यह तब हो रहा जब पाकिस्तान कश्मीर मसले को लेकर दुनिया भर में भारत के खिलाफ दुष्प्रचार करने में लगा हुआ है। इस पर आश्चर्य नहीं कि उसकी कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है।

ह्यूस्टन की सभा पाकिस्तान को हतोत्साहित करने के साथ ही उसे यह आभास कराने वाली भी साबित हो तो हैरत नहीं कि वह भारत के खिलाफ छल-कपट करके कुछ हासिल नहीं कर सकता। पता नहीं पाकिस्तान को कब सद्बुद्धि आएगी, लेकिन कम से कम भारत में विपक्षी दलों को तो यह समझना ही चाहिए कि ह्यूस्टन के आयोजन को दलगत राजनीति का विषय बनाना संकीर्ण राजनीति के अलावा और कुछ नहीं।

यह अच्छा नहीं हुआ कि देश के कुछ नेता ह्यूस्टन सभा को लेकर अनावश्यक टीका-टिप्पणी कर रहे हैं। यह तब है जब वे इससे अच्छी तरह परिचित हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेश में जहां कहीं भी जाते हैं वहां यथासंभव भारतीयों को संबोधित करते ही हैं। ऐसा लगता है कि ह्यूस्टन के आयोजन पर नुक्ता-चीनी करने वाले इस तथ्य की जानबूझकर अनदेखी कर रहे हैं कि इस कार्यक्रम में अमेरिका के दोनों प्रमुख दलों के नेताओं ने बराबर की दिलचस्पी दिखाई।