राज्य के मुखिया विभिन्न विभागों व कार्यालयों में सभी रिक्त पदों को भरने की बार-बार घोषणा कर रहे हैं। उनके निर्देश पर विभागों द्वारा नियुक्ति की अनुशंसाएं झारखंड लोक सेवा आयोग या झारखंड कर्मचारी चयन आयोग को भेजी भी जा रही हैं। लेकिन आयोग द्वारा नियुक्ति प्रक्रियाएं पूरी करने में हो रही देरी के कारण पद रिक्त रह जा रहे हैं। झारखंड लोक सेवा आयोग में ही कई पदों पर नियुक्तियां लटकी हुई हैं। राज्य के अपग्रेडेड हाई स्कूलों में प्रधानाध्यापकों के 638 पदों पर भी नियुक्ति लगभग एक साल से लटकी हुई है। स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग ने इन पदों पर नियुक्ति के लिए अनुशंसा पिछले साल नवंबर माह में ही आयोग को भेजी थी। लेकिन अभी तक इसकी परीक्षा नहीं हो सकी है।

आयोग ने स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग से अनुशंसा मिलने के बाद शुरू में इसकी परीक्षा के सिलेबस को लेकर देरी की। इसके बाद आवेदन मंगाए गए, लेकिन प्रतियोगिता परीक्षा आयोजित करने की कोई सूचना अभी तक प्राप्त नहीं है। इन पदों पर नियुक्ति के लिए आवेदन देनेवाले अभ्यर्थी भी संशय की स्थिति में हैं। परीक्षाएं नियमानुसार और ठोक-बजाकर हों, यह जरूरी है। लेकिन इसके नाम पर प्रतियोगिता परीक्षाएं लटकाना कतई ठीक नहीं है। यह स्थिति तब है जब राज्य के इन अपग्रेडेड हाई स्कूलों में प्रधानाध्यापक जैसे महत्वपूर्ण पद रिक्त हैं। झारखंड लोक सेवा आयेाग में सिविल सेवा परीक्षा भी लंबे समय से प्रक्रियाधीन ही है। 2014-15 में शुरू हुई यह परीक्षा अभी तक पूरी नहीं हो सकी है। मुख्य परीक्षा और साक्षात्कार बाकी है। यह बात दूसरी है कि इससे संबंधित नियमावली में पूर्व व वर्तमान सरकार द्वारा किए गए उलटफेर के कारण भी देरी हुई।

खाद्य सुरक्षा पदाधिकारियों की नियुक्ति भी आयोग में लंबे समय से लटकी हुई है। इन पदों पर समय पर नियुक्ति नहीं हो पाने का नुकसान इससे लगाया जा सकता है कि अधिकतर जिलों में खाद्य सुरक्षा पदाधिकारियों के पद रिक्त हैं। जबकि राज्य में खाद्य पदार्थो की गुणवत्ता सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी इन पदाधिकारियों की होती है। राज्य सरकार ने वैकल्पिक व्यवस्था के तहत चिकित्सकों को इस पद की जिम्मेदारी देते हुए खाद्य पदार्थो के सैंपल लेकर जांच कराने का अधिकार दिया है। लेकिन चिकित्सक अपने मूल काम से हटकर यह काम करने से हिचक रहे हैं। राज्य सरकार को चाहिए कि आयोगों की बैठक बुलाकर न केवल उन्हें समय पर परीक्षा लेने का निर्देश दे बल्कि उनकी समस्याओं पर भी ध्यान दे।

[स्थानीय संपादकीय: झारखंड]