बिहार के मुजफ्फरपुर के बाद उत्तर प्रदेश का देवरिया जिन शर्मनाक कारणों से चर्चा में है उससे यही पता चल रहा है कि अपने देश में बालिका अथवा नारी संरक्षण गृह चलाने का काम धूर्त और लंपट किस्म के लोग भी कर रहे हैैं। इससे भी चिंताजनक बात यह है कि ऐसे समाज विरोधी तत्व पहुंच वाले भी साबित हो रहे हैैं। जैसे यह साफ है कि मुजफ्फरपुर के बालिका आश्रय गृह का संचालन एक खराब छवि और दागदार अतीत वाले शख्स के हाथ में था वैसे ही यह मानने के पर्याप्त कारण हैैं कि देवरिया के नारी संरक्षण गृह की कमान भी संदिग्ध किस्म के लोगों के हाथ पहुंच गई थी। वे समाजसेवा के नाम पर किस तरह समाज विरोधी काम करने में लगे हुए थे, इसका पता इससे चलता है कि देवरिया के नारी संरक्षण गृह के बारे में लगातार मिल रही शिकायतों के कारण उसे बंद करने के निर्देश देने पड़े थे।

जिले के अधिकारियों ने इस निर्देश की अनदेखी करके नाकारापन का परिचय देने के साथ ही यह संदेह भी पैदा किया कि कहीं उन्होंने ढोंगी समाजसेवियों से साठगांठ तो नहीं कर ली थी? सच्चाई जो भी हो, यह अच्छा हुआ कि उत्तर प्रदेश सरकार ने बिना किसी देरी के देवरिया के जिला अधिकारी समेत अन्य संबंधित अधिकारियों के खिलाफ सख्ती दिखाई। और भी अच्छा होगा कि उन्हें उनकी नाकामी के लिए कुछ और दंड दिया जाए। तबादले या निलंबन को यथोचित दंड नहीं कहा जा सकता। समाज और देश को शर्मिंदा करने वाले ऐसे मामलों में सबक सिखाने वाली कार्रवाई की जानी चाहिए-न केवल संरक्षण गृह चलाने वालों के खिलाफ, बल्कि संबंधित अधिकारियों के खिलाफ भी।

यह शासन-प्रशासन की नाकामी ही है कि ऐसे तत्व आश्रय स्थल चलाते पाए जा रहे जो एक तरह से सभ्य समाज के लिए शत्रु हैैं। आखिर जिला प्रशासन इतने नाकारा कैसे हो सकते हैैं कि वे संदिग्ध गतिविधियों वाले किसी संरक्षण गृह की हकीकत न जान सकें? इससे लज्जाजनक और कुछ नहीं हो सकता कि बालिका अथवा नारी संरक्षण गृह में आश्रय लेने वाली लड़कियों और महिलाओं को देह व्यापार में धकेल दिया जाए।

यह आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है कि मुजफ्फरपुर और देवरिया के संरक्षण गृहों की शर्मिंदा करने वाली तस्वीर सामने आने के बाद बिहार और उत्तर प्रदेश ही नहीं, देश के अन्य राज्य भी इस तरह के आश्रय स्थलों की गहन निगरानी करना सुनिश्चित करें। यह इसलिए आवश्यक है, क्योंकि ऐसे स्थल आम तौैर पर उपेक्षित ही अधिक होते हैैं। दुर्भाग्य से इन स्थलों के प्रति उपेक्षा भाव शासन-प्रशासन में ही नहीं, समाज में भी है।

यह संभव नहीं जान पड़ता कि संरक्षण गृह में घोर अनुचित काम होते रहें और आसपास के लोगों को उनके बारे में कुछ भनक न लगे। किन्हीं कारणों से संरक्षण या आश्रय गृहों मे गुजर-बसर करने वाले बच्चों, लड़कियों और महिलाओं को गरिमामय जीवन जीने का अवसर मिले, इसकी चिंता सरकारों के साथ समाज को भी करनी चाहिए। अगर शासन के साथ समाज अपने हिस्से की जिम्मेदारी सही तरह निभा रहा होता तो शायद मुजफ्फरपुर और देवरिया में शर्मसार करने वाले मामले सामने नहीं आए होते।