एक बार इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक के खिलाफ छेड़ी जाने वाली मुहिम स्वच्छ भारत अभियान का हिस्सा बननी ही चाहिए, लेकिन इसमें संदेह है कि केवल जागरूकता फैलाकर अपेक्षित सफलता हासिल की जा सकती है। पर्यावरण मंत्रालय को इससे अनभिज्ञ नहीं होना चाहिए कि प्लास्टिक की तमाम ऐसी वस्तुएं प्रचलन में आ चुकी हैैं जिनका विकल्प उपलब्ध कराकर ही उसका उपयोग कम किया जा सकता है। एक बार इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक का उपयोग सीमित करने के लिए उसके विकल्प उपलब्ध कराने के साथ ही आम जनता के समक्ष यह स्पष्ट करना भी आवश्यक है कि 2 अक्टूबर से किस-किस तरह के प्लास्टिक पर पाबंदी होगी?

आम लोगों को इससे भी अवगत कराने की जरूरत है कि प्लास्टिक का उपयोग पर्यावरण के साथ ही सेहत के लिए भी हानिकारक है। कम से कम इसके प्रति तो लोगों को चेताया ही जाना चाहिए कि प्लास्टिक की थैलियों में खाने-पीने की सामग्री रखने के कैसे दुष्परिणाम सामने आते हैैं? यह काम इसलिए प्राथमिकता के आधार पर होना चाहिए, क्योंकि प्लास्टिक की थैलियों के साथ कप-प्लेट आदि का इस्तेमाल गांवों-कस्बों में बड़े पैमाने पर होने लगा है और वहां अधिकतर लोग इससे अनजान ही हैैं कि उनमें खान-पान की गर्म सामग्री रखना एक तरह से सेहत से जानबूझकर खिलवाड़ करना है। बेहतर यह होगा कि प्लास्टिक से मुक्ति के अभियान में अन्य विभागों को भी शामिल किया जाए।

यह सही है कि एक बार इस्तेमाल होने वाली प्लास्टिक से बनी वस्तुओं के विकल्प रातों-रात उपलब्ध नहीं कराए जा सकते, लेकिन इस दिशा में तेजी से कदम उठाए जाना आवश्यक है। प्लास्टिक के खिलाफ शुरू किया जाने वाला अभियान केवल प्लास्टिक की थैलियों की जगह जूट या कपड़े के थैले या फिर प्लास्टिक के कप के स्थान पर कुल्हड़ के इस्तेमाल को बढ़ावा देने तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए। आखिर इसकी अनदेखी कैसे की जा सकती है कि वर्तमान में खान-पान की लगभग प्रत्येक सामग्री की र्पैंकग प्लास्टिक में हो रही है? इसके अलावा दूध भी प्लास्टिक की थैलियों में मिल रहा है। इसे देखते हुए यह भी समय की मांग है कि वे कंपनियां भी इस अभियान में योगदान देने के लिए सक्रिय हों जो अपने उत्पादों की र्पैंकग प्लास्टिक में करती हैैं।

केंद्र और राज्य सरकारों को ऐसे उपाय भी करने होंगे जिससे प्लास्टिक की रिसाइक्लिंग बढ़ सके। इसके साथ ही प्लास्टिक कचरे के निस्तारण के भी ऐसे तौर-तरीके विकसित करने की जरूरत है जो पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाएं या फिर कम से कम पहुंचाएं। इस जरूरत की पूर्ति करते हुए यह भी देखा जाना चाहिए इन तौर-तरीकों पर सही तरह से अमल भी हो।